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मराठी बनाम हिंदी विवाद : शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती बोले- हिंदी बोलने में शर्म क्यों? ‘आदिवासी’ शब्द पर भी उठाए सवाल

रायपुर : शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने हाल ही में देश की भाषा, सामाजिक पहचान और विवाह से जुड़ी समस्याओं पर खुलकर अपनी राय रखी. इस दौरान उन्होंने हिंदी भाषा को लेकर चल रही बहस, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासियों को गाय दिए जाने का मुद्दा और शादी के बाद पुरुषों की हो रही हत्याओं पर तीखी टिप्पणियां की.

शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में हिंदी भाषा को लेकर चल रहे विरोध पर सवाल उठाते हुए कहा- ‘महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों के लोग जब दिल्ली आते हैं तो हिंदी में ही बात करते हैं. तो फिर अपने राज्य में हिंदी का विरोध क्यों? देश के चारों-पांचों प्रांतों की भाषाएं अलग-अलग हैं. कई लोग अंग्रेजी नहीं बोल पाते और हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं, यह गलत है. हिंदी बोलना जरूरी है. क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान सबको है, लेकिन हिंदी का अनादर करना उचित नहीं है.’

‘आदिवासी’ शब्द पर भी उठाए सवाल

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासियों को गाय देने की योजना पर प्रतिक्रिया देते हुए शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने ‘आदिवासी’ शब्द को ही भ्रामक और अपमानजनक बताया. उन्होंने कहा कि ‘आदिवासी’ शब्द ही एक भ्रम है. क्या वशिष्ठ और व्यास जैसे महान ऋषि इस भूमि के निवासी नहीं थे? क्या वे बाहर से आए थे? अगर वे यहीं के थे तो फिर आदिवासी कहना एक तरह से कलंक का प्रतीक बन जाता है. इस शब्द को ही हटा देना चाहिए. रही बात गाय देने की तो अगर सरकार किसी को गाय दे रही है तो उसका उद्देश्य पालन-पोषण और स्वावलंबन होना चाहिए, न कि राजनीति.

विवाह के बाद हो रही हत्याओं पर चिंता

शादी के बाद पति की हत्या जैसी घटनाओं पर भी महाराज ने चिंता जताई और समाज को आत्ममंथन करने की सलाह दी. उन्होंने कहा- ‘आजकल जिन पर फिदा होकर लोग शादी करते हैं, वही महिलाएं अपने पति को मरवा दे रही हैं. फिर सवाल उठता है कि जिनसे दूसरा विवाह किया, उसकी हत्या नहीं होगी इसकी क्या गारंटी है? पहले प्रेम होता है, फिर विवाह और उसके बाद हत्या. यह प्रेम नहीं, आत्मिक पतन है. जब कोई महिला अपने पति को मरवाकर दूसरी शादी करती है, तो क्या भरोसा है कि वह अपने दूसरे पति के साथ ऐसा नहीं करेगी?’

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