अकाल मृत्यु को टालने वाले महामृत्युंजय मंत्र की कैसे हुई रचना, शिवरात्रि पर जानें भगवान शिव से जुड़ी यह अद्भुत कहानी

भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा जाता है। महादेव अपने भक्तों की प्रार्थना हमेशा सुनते हैं। करुणा और रक्षा के प्रतीक भगवान शिव से एक ऐसी कहानी जुड़ी हुई है, जब उन्होंने अपने एक भक्त की मृत्यु तक को टाल दिया था। इस कहानी के बाद ही रोग, अकाल मृत्यु और भय जैसे कई विकारों को दूर करने के महामृत्युंजय मंत्र की रचना की गई थी। महामृत्युंजय मंत्र को इतना शक्तिशाली माना जाता है कि नियमित रूप से इसका जाप करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है बल्कि व्यक्ति रोगमुक्त भी रहता है। आइए, जानते हैं महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति क्यों हुई थी और इसे मृत्यु को टालने वाला मंत्र क्यों कहा जाता है। आइए, जानते हैं कहानी।

संतान प्राप्ति के लिए मृकण्डु ऋषि ने की थी कठोर समस्या

एक पौराणिक कहानी के अनुसार मृकण्डु नाम के ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। मृकण्डु ऋषि के कोए संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपन भक्त मृकण्डु को संतान प्राप्ति का वर दिया। कुछ समय पश्चात मृकण्डु और उनकी पत्नी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गया लेकिन कुछ समय बाद ऋषि-मुनियों ने बताया कि उनका पुत्र अल्पायु है। इसका अर्थ है कि उनके पुत्र की आयु मात्र 16 वर्ष ही थी। यह सुनकर मृकण्डु बहुत दुखी हुए, लेकिन उन्हें भगवान शिव पर पूरा विश्वास था कि भगवान शिव उनके पुत्र की मृत्यु को टाल देंगे। मृकण्डु की पत्नी ने कहा कि उन्हें भगवान शिव की शरण में जाना चाहिए। दोनों माता-पिता ने अपने पुत्र के थोड़ा बड़े होने पर उन्हें उनकी अल्पायु की बात बताई। यह बात सुनकर मार्कण्डेय अपने माता-पिता की चिंता समझते हुए एक शिव मंदिर में तपस्या करने के लिए चले गए।

इस तरह हुई महामृत्युंजय मंत्र की रचना

मंदिर में बैठकर मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और इसका जाप करने लगे। इसी तरह महामृत्युंजय मंत्र का अखंड जाप करते हुए मार्कण्डेय की आयु को 16 वर्ष हो गए। जब आयु पूरी होने पर यमराज उन्हें लेने आए, तो मार्कण्डेय भगवान शिव की आराधना कर रहे थे। जब यमराज ने मार्कण्डेय के प्राण खींचने के लिए उन पर अपना पाश डाला, तो मार्कण्डेय जल्दी से शिवलिंग से लिपटकर भगवान शिव से रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे। यह देखकर यमराज ने पूरी आक्रामता के साथ एक बार फिर से पाश फेंका, जो शिवलिंग पर जाकर लगा। यह देखकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और यमराज को अपने भक्तों के साथ नम्रता के साथ व्यवहार करने के लिए कहा। भगवान शिव ने यमराज को अपने भक्त मार्कण्डेय को प्राण दान देने की बात की, लेकिन यमराज ने भगवान शिव को प्रकृति के नियम की बात याद दिलाई। यह सुनकर भगवान शिव ने अपने भक्त मार्कण्डेय को दीर्घायु होने का वरदान दे दिया। इस तरह मार्कण्डेय द्वारा रचा गया महामृत्युंजय मंत्र अकाल मृत्यु को टालने वाला बन गया।

महामृत्युंजय मंत्र जाप करने की सावधानियां

इस मंत्र का जाप करते समय याद रखें कि आप किसी शब्द को गलत न बोलें, इसलिए आराम से इस मंत्र का जाप करें।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप मन-मन में करना चाहिए। चिल्लाकर इस मंत्र का जाओ न करें।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके ही करना चाहिए।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय इधर-उधर ध्यान न भटकाएं। पूरा ध्यान मंत्रों को जपने में ही रखें।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप आराम से बैठकर करें। दौड़ने, खाते या लेटे रहने के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप न करें। वहीं, अगर कोई रोगी व्यक्ति महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता है, तो वो लेटकर आंखों को बंद करके ध्यान लगाकर इस मंत्र का जाप कर सकता है।

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