अमन सिंह की अग्रिम जमानत पर फैसला सुरक्षित,आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसे है पति-पत्नी

बिलासपुर : प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के सचिव और प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह व उनकी पत्नी यास्मिन सिंह की अग्रिम जमानत अर्जी पर हाईकोर्ट के जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इससे पहले लोअर कोर्ट से अग्रिम जमानत अर्जी खारिज हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ ऍफ़आईआर रद्द करने के आदेश को निरस्त कर दिया है। साथ ही तीन महीने के लिए उन्हें राहत देते हुए राज्य शासन को पुलिसिया कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया था।

हाईकोर्ट से पूर्व में अग्रिम जमानत अर्जी खारिज होने के बाद अमन सिंह व उनकी पत्नी ने रायपुर के लोअर कोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दिया था। इस केस की सुनवाई एडीजे संतोष तिवारी की अदालत में हुई। उन्होंने सभी पक्षों को सुनने के बाद अग्रिम जमानत आवेदन खारिज कर दिया था, जिसके बाद अमन सिंह व यास्मिन सिंह के सीनियर वकील अनिल खरे सहित अन्य ने पक्ष रखते हुए कहा कि राज्य शासन राजनीतिक दुर्भावना के तहत काम कर रही है। जबकि, उन्होंने अपनी संपत्ति का पूरा व्यौरा प्रस्तुत कर दिया है, जिसमें आय से अधिक संपत्ति का मामला ही नहीं बनता।

राज्य शासन की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता अमृतोदास और सामाजिक कार्यकर्ता उचित शर्मा की ओर से जमानत देने का विरोध किया गया। साथ ही कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जब एफआईआर निरस्त करने के आदेश को ही खारिज कर दिया है, तब यह मामला और भी गंभीर हो गया है। ऐसे में उन्हें जमानत देना उचित नहीं है। हाईकोर्ट में सुबह 10.30 से दोपहर एक बजे लंच होते तक बहस चली। फिर भोजन अवकाश के बाद दोपहर 3.30 बजे तक जिरह चलती रही। लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। साथ ही कोर्ट का फैसला आते तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया है।

ईओडब्लू ने दर्ज किया है आय से अधिक संपत्ति का केस

मालूम हो कि सामाजिक कार्यकर्ता उचित शर्मा की शिकायत पर अमन सिंह और उनकी पत्नी यास्मीन सिंह के खिलाफ ईओडब्लू ने आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया है, जिसे रद्द करने के लिए अमन सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि उन्होंने ईओडब्लू को अपनी संपत्ति का पूरा हिसाब दे दिया है। फिर भी उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया है, जिसे रद्द की जाए। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए एसीबी और ईओडब्लू की ओर से दर्ज आपराधिक प्रकरण को निराधार मानते हुए निरस्त करने का आदेश दिया था।

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