रायपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाने वाला बस्तर (दंडकारण्य जोन) अब उनके लिए मुसीबत बनता जा रहा है. केंद्र सरकार की CRPF और राज्य सरकार की पुलिस के संयुक्त घेराबंदी के चलते नक्सलियों को समय पर जंगलों के अंदर ना तो डॉक्टर मिल पा रहे हैं और ना ही दवाइयां मिल पा रही हैं, जिससे ज्यादातर बड़े नक्सली लीडरों की जान खतरे में है. पिछले 4 सालों में 8 से अधिक शीर्ष नेताओं और 20 से ज्यादा छोटे कैडर के नक्सलियों की समय पर दवाई और इलाज न मिल पाने की वजह से मौत हो गई है.
डेढ़ करोड़ का इनामी नक्सली गणपति गंभीर रूप से बीमार
आईबी से मिली जानकारी के मुताबिक सेंट्रल कमेटी मेंबर डेढ़ करोड़ रुपये का इनामी नक्सली गणपति भी बस्तर के दंडकारण्य जोन में मौजूद है और दवाइयां और ईलाज नहीं मिलने की वजह से गंभीर रूप से बीमार है.
दंडकारण्य क्षेत्र को नक्सली मानते हैं अपना सेफ जोन
माना जाता है कि बस्तर के जंगल और यहां की भौगोलिक परिस्थितियां नक़्सलियों के लिए अनुकूल हैं. यही वजह है कि बीते 4 दशक में नक्सली संगठन ने इसे देश का सबसे बड़ा गोरिल्ला वार जोन बनाने में कामयाबी हासिल की लेकिन जो चीज फायदे की है, वही नुकसान की वजह भी साबित होती है. पुलिस ने नक़्सलियों को साधने के लिए इसी रणनीति का इस्तेमाल करते हुए जंगलों के भीतर लॉजिस्टिक मेडिकल सप्लाई और अन्य जरूरी सामान की उपलब्धता को घेराबंदी के जरिए बंद कराना शुरू किया है, इसके चलते महाराष्ट्र के बॉर्डर इलाक़ों छत्तीसगढ़, तेलंगाना और उड़ीसा में नक्सलियों को संसाधनों का अभाव शुरू हो गया है और उन्हें मेडिकल सामानों की किल्लत होने लगी है.
ज्यादातर नक्सली नेता गंभीर रूप से बीमार
नक्सली संगठन में शीर्ष नेताओं में से 17 से अधिक पोलित ब्यूरो और केंद्रीय कमेटी के ऐसे नेता हैं जो अक्सर बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्रों में अपना डेरा जमाये हुए रहते हैं और इनमें से अधिकांश नक्सली गंभीर रूप से बीमार रहते हैं जिन्हें नियमित तौर पर इलाज की जरूरत के साथ ही दवाइयों की भी आवश्यकता होती है. पुलिस ने सर्विलांस के जरिए नक्सलियों के मेडिकल सप्लाई नेटवर्क को ध्वस्त कर दवाइयों की उपलब्धता को सीमित कर दिया है. बस्तर पुलिस के इन दावों की पुष्टि हाल ही में तब हुई जब नक्सली नेता और डेढ़ करोड़ रुपए के इनामी कटकम सुदर्शन की मौत हो गई. नक्सलियों ने खुद माना कि समय पर दवाई नहीं मिलने की वजह से नक्सली कमांडर बसंत और उसके बाद कटकम सुदर्शन की भी मौत हो गई.
8 से अधिक नामी नक्सलियों की इलाज के अभाव में हुई मौत
इधर दवाइयों की कमी से सिर्फ कटकम सुदर्शन और कमांडर बसंत की ही मौत नहीं हुई, पिछले सालों में दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सचिव और दुर्दांत नक्सली रमन्ना की मौत भी समय पर उपचार नहीं मिलने की वजह से सुकमा इलाके में हुई थी. इसी तरह हरगोपाल, राम कृष्णा उर्फ राजू सहित चार ऐसे बड़े नक्सली लीडरों की भी मौत इलाज के अभाव में और समय पर दवाई नहीं मिलने के चलते हुई थी, वहीं कुछ ऐसे नक्सलियों को उस वक्त पकड़ा गया जब ये लोग अपने उपचार के लिए छत्तीसगढ़ से निकलकर तेलंगाना या महाराष्ट्र जा रहे थे. अधिकांश नक्सलियों के सरेंडर में भी यह बात सामने आई कि बीमार होने के बाद नक्सली संगठन में समय पर दवाई और मेडिकल सुविधाएं नहीं मिलने से बेमौत मारे जाने से अच्छा नक्सली पुलिस के सामने सरेंडर का फैसला चुनते हैं, हालांकि उनकी राजनीतिक विचारधारा में कोई खास बदलाव नहीं होता लेकिन यह साफ है कि जंगलों में लंबे संघर्ष का संकल्प लेकर काम कर रहे नक्सली मेडिकल सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं.
सप्लाई चैन को कमजोर करने में जुटी पुलिस
इधर बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि नक्सलियों की इस तरह की घेराबंदी के टारगेट में अगला निशाना नक्सली लीडर गणपति का है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी का महासचिव गणपति लंबे समय से पुलिस की मोस्ट वांटेड सूची में शामिल है लेकिन देश के इस सबसे नामी नक्सली को पुलिस अब तक पकड़ नहीं पाई है. वहीं माना जा रहा है कि गणपति अबूझमाड़ के जंगलों में मौजूद है और गंभीर रूप से बीमार है और उपचार नहीं मिलने से कभी भी गणपति की मौत हो सकती है. आईजी का कहना है कि बस्तर में तैनात अर्धसैनिक बल, स्थानीय पुलिस और स्पेशल फोर्स के अलावा छत्तीसगढ़ से लगे तीनों राज्यों की पुलिस नक्सलियों की सप्लाई चैन को कमजोर करने में अपनी पूरी ताकत लगा रही है ताकि नक्सलियों तक कैसे भी खासकर मेडिकल सुविधा, हथियार असलहा-बारूद और राशन के सामान की सप्लाई ना हो सके.