भगवान कृष्ण भगवद् गीता में कहते हैं, “जब तक आप अपनी इच्छाओं का त्याग नहीं कर देते, तब तक आप योग (स्वयं के साथ मिलन) को प्राप्त नहीं हो सकते”। अत: प्रश्न यह है कि इच्छाओं का त्याग कैसे करें? अपनी इच्छाओं का त्याग करने की कला ही ‘ध्यान’ है।
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर जी के मुताबिक, जीवन में आप जब भी आनंद का अनुभव करते हैं, वह आपकी आत्मा की गहराई से होता है। जिन बातों को आपने काफी समय से पकड़ कर रखा हुआ था, जब आप उन सभी बातों को छोड़ पाने में समर्थ हो पाते हैं और भीतर गहराई में अपने केंद्र में स्थिर हो जाते हैं, उसी को ध्यान कहते हैं।
वास्तव में ध्यान कोई क्रिया नहीं है। यह ‘कुछ न करने’ की कला है! ध्यान में मिलने वाला विश्राम, गहरी नींद से प्राप्त होने वाले विश्राम से भी अधिक गहरा होता है, क्योंकि ध्यान में आप सभी इच्छाओं से परे हो जाते हैं। ध्यान मस्तिष्क में अति शीतलता लाता है और यह सम्पूर्ण शरीर और मन की पूर्ण देखभाल करता है।
हम आस-पास की हर वस्तु को तो देख लेते हैं लेकिन अपनी ही शक्तियों को नहीं देख पाते। जीवन ने हमें कई शक्तियां प्रदान हैं – शरीर, श्वास आदि। क्या आप अपने शरीर के विषय में जानते हैं? आपको अपने शरीर का तभी भान होता है जब कभी उसमें पीड़ा होती है।
जैसे जब एक बच्चे पर ध्यान नहीं दिया जाता, तब वह शिकायत करता है, वैसे ही जब आप अपने शरीर पर ध्यान नहीं देते तो वह भी शिकायत करता है। यदि आप नियमित रूप से अपने शरीर की देखभाल करते हैं, तो यह आपको परेशान नहीं करेगा। शरीर की देखभाल करना केवल भोजन और व्यायाम करना नहीं है; इसका अर्थ है आपको अपना ध्यान शरीर के प्रत्येक अंग पर ले जाना है और सचेत रूप से उससे प्रेम करना है। आपका शरीर आपके सबसे निकट है; यह आपके अस्तित्व की पहली परत है।
दूसरी परत है- श्वास।
त्वचा को चमड़े से भिन्न क्या बनाता है? इसका उत्तर है, श्वास ! जूतों का भी कुछ मूल्य होता है लेकिन आपका शरीर, जब श्वास नहीं ले रहा है, तो उसका कोई मूल्य नहीं है। जब हम दुनिया में आए तो हमारा पहला काम श्वास लेना था और आखिरी काम श्वास छोड़ना होगा, लेकिन हम अपने जीवन के इस मौलिक कार्य को अनदेखा कर देते हैं।
तीसरी क्षमता जो हमारे पास है, वह है मन।
यह वह संकाय है, जिसके माध्यम से हम सभी प्रकार के अनुभव करते हैं और फिर भी इसके विषय में हम सबसे कम जानते हैं।
अगला संकाय है- बुद्धि।
इस समय जब आप यह पढ़ रहे हैं तो आपकी बुद्धि कुछ कह रही है। यह किसी प्रकार का निर्णय ले रही है, यह जो लिखा गया है उसे स्वीकार या अस्वीकार कर रही है, मेरे शब्दों पर प्रश्न कर रही है। यह सब बुद्धि से आता है।
पाँचवी परत, हमारी स्मृति है।
यह बहुत ही रोचक तरीके से कार्य करती है। यदि कोई आपकी 10 प्रशंसाएं और एक निंदा करे, तो आप उस एक निंदा को ही याद रखेंगे और उससे चिपके रहेंगे। मूलतः स्मृति रुचियों पर आधारित होती है। यह केवल उन्हीं स्थितियों और विषयों को अपने पास रखती है जिनमें उसे रुचि होती है; यदि आप खगोल विज्ञान का आनंद लेते हैं, तो आपकी स्मृति भी इसे संजोए रखेगी।
इसके बाद है-अहंकार
जब आप प्रसन्न होते हैं, तो आपके भीतर कुछ ऐसा है जिसका विस्तार होता है। वह भावना है-अहंकार। अहंकार सुख लाता है और यही रचनात्मकता, शर्मीलापन या दुख भी लाता है। यदि आप शर्मीले और भयभीत हैं, तो यह आपके अहंकार के कारण है; आनंद और अभिमान भी अहंकार के कारण ही हैं। हर भय के पीछे का कारण अहंकार होता है । हम अहंकार के विषय में बहुत कम जानते हैं। आपके अहंकार का ज्ञान आपको मजबूत करता है; यह आपकी दुर्बलता को समाप्त कर देता है।
अगला संकाय कुछ ऐसा है जिसकी कोई ठोस सीमा नहीं हैं। कभी-कभी जब आप तनावमुक्त होते हैं या आप प्रेम में होते हैं, तो आपको आश्चर्य होता है कि जीवन में कुछ और भी है जो रहस्यमयी है जिसके विषय में हम नहीं जानते हैं। वह है- चेतना, आत्मा। आप शायद ही इस पर ध्यान देते हों, लेकिन जब भी आप इस पर ध्यान देते हैं वे कुछ ही क्षण आपको बहुत शांति और सुकून देते हैं। उन पलों को संजोकर रखें, वे आपके जीवन को समृद्ध बनाएंगे।
ध्यान का अर्थ है- अतीत के क्रोध, अतीत की घटनाओं और भविष्य की सभी योजनाओं से छुटकारा पाना। योजनायें आपको अपने भीतर गहराई में उतरने से रोकती हैं। वर्तमान क्षण को स्वीकार करना और प्रत्येक क्षण को पूरी तरह गहराई के साथ जीना ही ध्यान है। आपने जितनी अधिक छोड़ने की कला सीख ली है, आप उतने ही अधिक प्रसन्न हैं और उतने ही अधिक स्वतंत्र हैं।