चंपारण मटन की कहानी जान जल जाएगी दिमाग की बत्ती, Oscars की रेस में सेमीफाइनल तक पहुंची फिल्‍म में ये है खास

मुंबई : कुछ फिल्मों की कहानी जिंदगी का खूबसूरत हिस्सा होती हैं तो कुछ कहानी हमें सीख दे जाती है। वहीं कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो समाज के अनदेखे पहलुओं को उजागर करती हैं। ऐसी ही दिल में उतर जाने वाली एक शॉर्ट फिल्म है ‘चंपारण मटन’, जो इन दिनों काफी छाई हुई है। बिहार से जुड़ी इस फिल्म की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि ये ऑस्कर के सेमीफाइनल तक पहुंच गई है। तो चलिए ‘चंपारण मटन’ की खूबसूरत सी कहानी और खास बातों के बारे में बताते हैं।

‘चंपारण मटन’ एक शॉर्ट फिल्म है, जो ऑस्कर के ‘स्टूडेंट अकेडमी अवॉर्ड’ की नैरेटिव कैटगरी के सेमीफाइनल तक पहुंच गई है। इस साल FTII की तीन फिल्मों को इंटरनेशनल अवॉर्ड में भेजा गया था। लेकिन ‘चंपारण मटन’ ही वो फिल्म है, जो सेमीफाइनल तक पहुंची है।

क्यों दिया जाता है ऑस्कर का स्टूडेंट अकेडमी अवॉर्ड

साल 1972 से दिए जाने वाले स्टूडेंट अकेडमी अवॉर्ड को चार अलग-अलग कैटगरी में दिया जाता है। इस अवॉर्ड के लिए सिर्फ छात्र ही अपनी फिल्में भेज सकते हैं। वो स्टूटेंड, जो फिल्म ट्रेनिंग से पढ़ रहे होते हैं। इस कैटगरी के लिए 2400 फिल्में भेजी थीं, जिसमें से सिर्फ 17 फिल्में ही सेमीफाइनल में पहुंची है। ऑस्कर का ये अवॉर्ड कब मिलेगा, इसका ऐलान अक्टबूर में हो सकता है।

‘चंपारण मटन’ में हैं ‘पंचायत’ वाले ‘विकास भैया’

‘चंपारण मटन’ को रंजन कुमार ने डायरेक्ट किया है, जिसमें ‘पंचायत’ फेम चंदन रॉय भी हैं। चंदन को टीवीएफ की ‘पंचायत’ सीरीज में ‘विकास’ भैया का रोल निभाने की वजह से जाना जाता है। वहीं फलक खान भी इसमें लीड रोल में हैं।

‘चंपारण मटन’ की कहानी

‘चंपारण मटन’ एक तीखा व्यंग्य वाली फिल्म है। ये कहानी ऐसी गर्भवती महिला की है, जिसके पति की नौकरी कोरोना व लॉकडाउन की वजह से चली गई है। मगर प्रेग्नेंसी में एक दिन उसे चंपारण का मशहूर मटन खाने का मन होता है। अब गरीब परिवार में 800 रुपये किलो बिकने वाले मटन को कैसे खरीदा जाए और फिर पकाया जाए, ये आज भी बहुत बड़ी बात है। इसी थीम पर फिल्म को खूबसूरती और इमोशंस के साथ FTII में पढ़ाई कर रहे रंजन कुमार ने बनाया है।

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