Mahasamund में वन भूमि पर अवैध निर्माण का खुलासा, जांच के डर से पटवारी और शिक्षक तोड़ने लगे खुद की दुकानें

Mahasamund। गौरवपथ स्थित वन विद्यालय से सटी सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बनाई गई दुकानों को अब खुद ही पटवारी और शिक्षाकर्मी ढहा रहे हैं। कारण – प्रशासनिक जांच की आहट।
मामला खसरा नंबर 102/5 (1898 वर्गफुट) की शासकीय भूमि से जुड़ा है, जहां बड़े झाड़ का घना जंगल फैला हुआ है। इससे सटे खसरा नंबर 102/4 की भूमि को हल्का पटवारी की मिलीभगत से कुछ शासकीय शिक्षकों और एक जमीन दलाल ने 100 और 20 रुपए के ई-स्टांप पर 40 लाख रुपये में खरीदा। लेकिन निर्माण अपनी जमीन पर नहीं, बल्कि जंगल वाली भूमि यानी खसरा नंबर 102/5 पर कर दिया गया।
सूत्रों के अनुसार, इस फर्जीवाड़े के दौरान प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह से चुप्पी साधे रहा। इसका फायदा उठाकर जमीन माफिया और शासकीय कर्मचारी निडर होकर निर्माण कार्य में जुटे रहे। लेकिन वन विभाग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू की और राजस्व विभाग से रिपोर्ट की मांग की।
राजस्व अमला ने स्थल निरीक्षण और नाप-जोख तो कर लिया, लेकिन 10 दिन बीतने के बाद भी रिपोर्ट वन विभाग को नहीं सौंपी गई है।
राजस्व विभाग की सुस्ती पर सवाल
वन विभाग भी जिला प्रशासन का ही हिस्सा है, इसके बावजूद रिपोर्ट डीएफओ तक नहीं पहुंची है। पहले जहां इस जमीन को अक्टूबर 2024 में आबादी क्षेत्र बताया गया था, अब ताजा जांच में यही जमीन वन विद्यालय के लिए आरक्षित और जंगल क्षेत्र पाई गई है।
डीएफओ बोले – पहली बार देखा कि कब्जाधारी खुद तोड़ रहे कब्जा
डीएफओ पंकज राजपूत ने कहा कि जिन लोगों ने अवैध कब्जा किया था, वे खुद ही अब उसे तोड़ रहे हैं। मेरे कार्यकाल में यह पहली बार हो रहा है। राजस्व विभाग को जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था, लेकिन अब तक रिपोर्ट नहीं मिली। मिलते ही उचित कार्रवाई की जाएगी।
कलेक्टर ने जताई सख्ती
कलेक्टर विनय कुमार लंगहे ने कहा कि यदि अवैध निर्माण करने वाले स्वयं उसे हटा रहे हैं तो यह अच्छी बात है, लेकिन इसमें संलिप्त सरकारी कर्मचारियों की जांच जरूर की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसे गैरकानूनी कार्यों में शासकीय कर्मचारियों की भूमिका कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।