वास्तु की 8 दिशाओ का महत्त्व क्या है? उर्जा स्तर और स्वामी ग्रह की सम्पूर्ण जानकारी

वास्तु शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसमें दिशाओं की ऊर्जा का महत्व है। पूर्व, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम के अलावा चार कोणीय दिशाओं की भी गणना इस विज्ञान के तहत की जाती है। उत्तर पूर्व को ईशान कोण, दक्षिण पूर्व को आग्नेय कोण, दक्षिण पश्चिम को नैऋत्य कोण और उत्तर पश्चिम को वायव्य कोण कहा जाता है और इसी के आधार पर पूरी वास्तु की गणना की जाती है। यहां हर दिशा का महत्व है क्योंकि हर दिशा पर ग्रह, उसके स्वामी और ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का प्रभाव रहता है। इसी कारण से हमारे ऋषि मुनि हजारों साल पहले इन बातों को समझते थे और उन्होंने अपने ग्रंथों के माध्यम से इस बात को समझाया कि हमें दिशाओं को ठीक रखना चाहिए।

पूर्व दिशा –

इस दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य और देवता इंद्र हैं। यह दिशा अच्छे स्वास्थ्य, बुद्धि और ऐश्वर्य की घोतक है इसलिए जब आप भवन का निर्माण करें तो पूर्व दिशा का कुछ हिस्सा खुला छोड़ दें। नियम के अनुसार इस स्थान को थोड़ा नीचे रखना चाहिए ताकि आपने पितरों का आशीर्वाद आपको मिलता रहे। इस दिशा के ख़राब होने पर सिर दर्द और ह्रदय रोग जैसी बीमारी होती है।

पश्चिम दिशा –

इस दिशा के स्वामी ग्रह शनि और देवता वरुण हैं। यह दिशा सफलता और प्रसिद्धि को दर्शाती है। इस दिशा ने गड्ढा और दरार नहीं होनी चाहिए और ना ही यह दिशा नीची होनी चाहिए। अगर घर के स्वामी को किसी भी कार्य में सफलता हाथ नहीं लग रही है तो आप समझ जाइए कि इस दिशा में दोष है। इस दिशा के बिगड़ जाने से पेट और गुप्त अंग में रोग होता है।

उत्तर दिशा –

इस दिशा के स्वामी ग्रह बुध और देवता कुबेर हैं। यह दिशा बुद्धि, ज्ञान और मनन की दिशा है। इस दिशा से मां का भी विचार किया जाता है इसलिए उत्तर में थोड़ा स्थान खाली छोड़कर भवन का निर्माण करवाएं तो माता का स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इस दिशा के ऊँचा और दोषपूर्ण होने पर छाती और फेफड़े का रोग हो सकता है।

दक्षिण दिशा – 

इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल हैं और देवता यमराज हैं। यह दिशा पद और प्रतिष्ठा दर्शाती है। इस दिशा से पिता के सुख भी विचार किया जाता है। इस दिशा को आप जितना भारी और ऊँचा रखते हैं आपको उतना ही समाज में सम्मान मिलता है। यह शरीर के मेरुदंड की भी कारक है। इस दिशा में दर्पण और पानी की व्यवस्था कभी भी नहीं करनी चाहिए।

आग्नेय कोण –

इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि देव हैं। यह दिशा व्यक्ति की सेहत को बताती है। प्रजनन क्रिया और संतति वृद्धि इसी दिशा से होती है। आपकी नींद और शयन सुख भी इसी दिशा से देखा जाता है। इस दिशा के खराब होने से स्त्री को दोष लगता है और संतान पैदा होने में दिक्क्त होगी। इस दिशा के ख़राब होने से लोग आलसी हो जाते है। इस दिशा को सदैव दोषपूर्ण रखने से पति पत्नी अच्छा शारीरिक सुख भोगते हैं।

नैऋत्य कोण- 

इस दिशा के स्वामी ग्रह राहु और देवता नैऋती नाम की एक असुर स्त्री है। यह दिशा असुर और क्रूर कर्म करने वाली की दिशा है। घर की किसी स्त्री के साथ शारीरिक शोषण अगर हो तो इसी दिशा के दोष से होता है। इसलिए इस दिशा को कभी भी खाली और रिक्त नहीं छोड़ना चाहिए। यह दिशा गृह स्वामी के निर्णय शक्ति को दर्शाती है। अगर  यहां पानी हो, गड्ढा हो या नीचा हो तो घर में अकाल मौत होती है।

वायव्य कोण –

इस दिशा के स्वामी चन्द्रमा और देवता पवन देव हैं। इस दिशा का जुड़ाव आपके घर आने वाले लोगों से और आपके मित्रों से है। आपका मानसिक विकास और आपके शुक्राणु भी इसी दिशा से देखे जाते हैं। यह कोण ईशान कोण की तुलना में अधिक नीच नहीं होना चाहिए। यहां ऊँची इमारत का निर्माण आपके शत्रु की संख्या में वृद्धि करता है और घर की स्त्री को बीमार करता है।

ईशान कोण – 

इस दिशा के स्वामी ग्रह गुरु हैं और देवता श्री विष्णु हैं। यह दिशा ज्ञान, विवेक और बुद्धि की सूचक है। इस दिशा को हमेशा साफ़ रखे, खुला रखे और नीच रखे। इस दिशा में कोशिश करे की किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं हो। अगर यह दिशा दोष रहित है तो सम्पूर्ण वंश को समृद्धि मिलती है। इस दिशा में बाथरूम होना या कूड़ा रखना बीमारी का संकेत है।

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