सावन पर्व विशेष : छत्तीसगढ़ में है अनेक प्राचीन शिव मंदिर, कही बढ़ रही शिव लिंग की उचाई तो किसी का हर मौसम में बदलता है रंग

रायपुर। आज से सावन के महापर्व की शुरुआत ही गई है। भगवान शिव को समर्पित इस माह में भक्त श्रद्धा भाव से पूजा- अर्चना करते हैं। हर साल सावन के महीने में प्रदेश के प्रमुख मंदिरों मं भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। प्रदेश में कई प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. जिनका अपना विशेष महत्त है ऐसे में आइये जानते हैं प्रमुख मंदिरों के बारे

हटकेश्वर महादेव, रायपुर

हटकेश्वर महादेव राजधानी रायपुर में खारुन नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कलचुरी राजवंश के राजा ब्रह्देव राय के शासनकाल मैं हाजीराज नाइक ने खारुन नदी के तट पर कराया गया था। हटकेश्वर महादेव को नागर ब्राम्णों के कुलदेवता के रूप में भी माना जाता है। सावन के महीने में विशेष रूप से पूजा- अर्चना की जाती है। इस प्राचीन मंदिर के दर्शन के लिए राजधानी ही नहीं बत्कि दूर- दूर से श्रद्धालु आते हैं।

भूतेश्वर महादेव, गरियाबंद

भूतेश्वर महादेव गरियाबंद जिले में पहाड़ों और जंगलों के बीच स्थित प्राकृतिक शिवलिंग है। जिसकी ऊंचाई हर साल बढ़ती जा रही है। स्थानीय स्तर पर इसे भकुर्रा महादेव के नाम से भी जाना जाता है। हर साल सावन और महाशिवरात्रि के पर्व पर सैकड़ों भक्‍त भूतेश्वर महादेव के दर्शन करने के लिए आते हैं और बाबा से अपनी मनोकामना अर्जी करते हैं।

सोमनाथ मंदिर, सिमगा

राजधानी रायपुर से लगे सिमगा का सोमनाथ मंदिर प्रदेशभर में प्रसिद्द है। 6वीं- 7वीं शताब्दी में बना यह प्राचीन शिवलिंग हर मौसम में रंग बदलता रहता है। जिसके चलते यह चर्चा का विषय बना रहता है। साथ ही इस शिवलिंग की ऊंचाई दिनों- दिन बढ़ती जा रही है। यह मंदिर राज्य के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है जहां भक्तों का तांता लगा रहता है महाशिवरात्रि और सावन के पर्व में भगवान की विशेष पूजा की जाती है।

कुलेश्वर महादेव, राजिम

राजिम के त्रिवेणी संगम स्थित कुलेश्वर महादेव अत्यंत प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि, वनवास के समय माता सीता ने रेत की शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। साथ ही प्रभु श्रीराम ने भी कुलेश्वर महादेव की पूजा अपने कुल देवता के रूप में की थी। इसलिए मंदिर का नाम कुलैश्वर महादेव पड़ा। यह दुनिया का पहला पंचमुखी शिवलिंग है। आठवीं शताब्दी में बना यह प्राचीन मंदिर संगम के बीच में एक ऊंची जगती पर वर्षों से टिका हुआ है। यह मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। यहां सावन और महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा होती है।

भोरमदेव, कवर्धा

मैकल पर्वत के सुन्दर जंगलों के बीच बसा भोरमदेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित कवर्धा जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। मंदिर का निर्माण 7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच नागदंशी राजा गोपाल देव ने कराया था। इस प्राचीन मंदिर की संरचना और कलाकृतियाँ मध्यप्रदेश स्थित खजुराहो मंदिर से मिलती है इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। यह मंदिर एक उंचे चबूतरे पर बना है यहां प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं। भोरमदेव मंदिर की कलाकृति अद्भुत है।

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