सोसाइटीयो से खाली लौट रहे किसान : डीएपी गायब, बाजार में मिलती जुलती खाद महंगी, क्वालिटी की जांच तक नहीं

रायपुर। राज्य की सोसाइटियों में डीएपी के संकट ने किसानों को मुसीबत में डाल दिया है। सोसाइटियों में खाद नहीं होने की वजह से खुले मार्केट में उनको ज्यादा कीमत पर डीएपी का सौदा करना पड़ रहा है। मार्केट में डीएपी के विकल्प के तौर पर दूसरी खाद मिल रही है, जिसका दाम तो ज्यादा है ही, इसकी आड़ में गुणकत्ताविहीन उर्वरक भी खपाए जाने की आशंका बनी हुई है। कई इलाकों में बाजारों का सर्वे किया गया तो पता चला कि बाजार में महंगे दामों पर गुलमोहर, बयो और ग्रोमोर जैसी कुछ और खाद किसानों को बेची जा रही है।
छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा से मानसून की एंट्री हो चुकी है और इस हफ्ते राजधानी तक पहुँचने की उम्मीद जताई जा रही है। प्री मानसून बारिश के साथ हुई अच्छी शुरुआत के बीच किसानों ने भी खेती किसानी की तैयारियां तेज कर दी है। इन तैयारियों के बीच किसानों को सर्वाधिक डीएपी खाद के संकट से जूझना पड़ रहा है। सोसायटियों में खाद नहीं है और निजी दुकानदार उन्हें ‘कई उत्पाद को डीएपी बताकर महंगे दामों पर बेच रहे है।
डीएपी खाद के नहीं होने से किसानों को हो रहा नुकसान
राजनांदगांव जिले में गुलमोहर ओर ग्रोमोर खाद की महंगे दामों पर बेची जा रही है। बताया जाता है कि गुलमोहर नाम की किसी डीएपी खाद होने की जानकारी कृषि महकमे को भी नहीं है लेकिन शहर की दुकानों में किसानों को 1750 रूपए में मिल रही है। गौरतलब है कि सोसाइटियो में 1350 रूपए में मिलने वाली डीएपी खाद के नहीं होने से किसानों को प्रति बोरी चार सौ रूपए का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। यहीं हाल दुर्ग जिले का है जहां स्तरहीन खाद की बिक्री हो रही है। सूत्रों की माने तो डीएपी संकट के बीच राज्य में कई स्थानों पर नकली खाद तैयार किए जाने का भी अवैध कारोबार शुरू हो गया है।
संकट के बीच शुरू हुई अवैध फैक्ट्रयां
देशभर में डीएपी खाद के संकट के बीच खाद की अवैध फैक्ट्रयां भी खुल गयी हैं जहां नकली डीएपी खाद बनाई जा रही है। राज्य शासन ने ऐसी फैक्ट्रयों की पतासाजी करने और कार्रवाही करने के लिए आज पर्यन्त तक कोई आदेश जारी नहीं किए है। यहीं कारण है कि प्रशासनिक अमला इस मामले को गंभीरता से भी नहीं ले रहा है। मामले की पड़ताल में यह भी पाया है कि राज्य के कुछ जिलों में सोसाईटियो से ज्यादा निजी क्षेत्र में डीएपी की सप्लाई कर दी गई है। कई जिलों में स्थिति यह भी है कि वहां सोसाइटियों को नए लक्ष्य से अभी तक आधे से कम डीएपी मिली है वहीं निजी को लक्ष्य के अनुरूप शत प्रतिशत खाद की सप्लाई कर दी गई है।
जिलों ने घटाया डीएपी का लक्ष्य
युद्ध के कारण पूरे देशभर में प्रभावित हुई डीएपी की सप्लाई के बीच राज्य सरकार ने निर्धारित लक्ष्य में भी करीब 50 फीसदी की कटौती कर दी है। दुर्ग में पिछले साल डीएपी का लक्ष्य करीब 14 हजार मैट्रिक टन था जिसे कम कर ‘छह हजार मीट्रिक टन कर दिया गया है। वहीं हाल राजनांदगांव जिले का है। यहां 11 हजार मैट्रिक टन के लक्ष्य को 4500 मैट्रिक टन कर दिया गया है। कागजों में लक्ष्य में कटौती कर यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि सोसायटियों में पर्याप्त खाद की सप्लाई कर दी गई है।
दुर्ग में दर्जनभर से अधिक कंपनियों की द्कानदारी
डीएपी का भंडारण दुर्ग की सोसायटियों में पचास फीसदी की गई है, उसमें भी 14 हजार टन से पांच हजार टन टारगेट कम कर किया जा रहा है। सोसायदियों में भंडारण नहीं किए जाने का फायदा निजी दुकानदार उठा रहे है। दुर्ग के गंज चौक में एक दुकान से जानकारी लेने पर बताया गया कि, बाजार में कोरोमंडल, ग्रोमोर और इफको जैसी दर्जनभकंपनियां डीएपी खाद बेच रही हैं। इसमें डीएपी के बजाय अन्य खाद मिलाकर इसकी बिक्री की जा रही है। जिसमें साउथ की डीएपी 17 सौ रूपए बैग, एनएफएल की 1350 रूपए, महाधन कंपनी की 11:30,14 अनुपात वाली महाधन कंपनी की डीएपी`1850 रूपए में बेची जा रही है, जबकि सोसायटी में 18.24 की डीएपी सिर्फ 1350 रूपए में बिक रही है।