यदि पीड़िता के फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट की जांच करने तथा पीड़िता से संबंधित ऑडियो रिकॉर्ड चलाने की अनुमति दी जाती है, तो इससे पीड़िता की गोपनीयता से समझौता हो सकता है।”
0 यह है मामला
Bilaspur High Court: पीड़िता जिला पंचायत सदस्य के पद पर कार्यरत थी और याचिकाकर्ता खाद्य निरीक्षक था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, वे अपने काम के सिलसिले में एक दूसरे से मिलते रहे। इसी बीच धीरे-धीरे उनके बीच घनिष्ठता हो गई। तकरीबन 18-19 महीने बाद पीड़िता को पता चला कि याचिकाकर्ता पहले से ही शादीशुदा है और उसके दो बच्चे हैं। जब पीड़िता ने याचिकाकर्ता से इस तथ्य को छिपाने के बारे में पूछा, तो बहस शुरू हो गई जिसके कारण उनका रिश्ता टूट गया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ता ने बाद में अपने दोस्त के फोन नंबर का उपयोग करके उससे संपर्क किया और उसके अश्लील वीडियो को सार्वजनिक करने की धमकी दी।
इसके बाद, जब याचिकाकर्ता से मुलाकात हुई तब याचिकाकर्ता ने पीड़ित को अपनी गाड़ी में बैठाया और एक लॉज में ले गया। इसी बीच पीड़िता ने याचिकाकर्ता के फोन से 4-5 अश्लील वीडियो डिलीट कर दिया।
Bilaspur High Court: पीड़िता ने शिकायत की कि याचिकाकर्ता उसे जबरन एक लॉज में ले गया, जहां उसने उसके हाथ-पैर बांधकर, उसे मजबूर करके और अगले दिन तक उसे बंधक बनाकर ब्लैकमेल किया और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। बाद में, उसने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर पीड़िता को एक वाहन में ले जाकर शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और उसका सामान छीन लिया। इसलिए, उन्होंने एफआईआर दर्ज कराई जिसके बाद जांच की गई और याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 294, 323, 506, 376 और 376 (2) (एन) के तहत आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।
मुकदमे के दौरान याचिकाकर्ता ने विशेष लोक अभियोजक और बचाव पक्ष के वकील की उपस्थिति में पीड़िता के फेसबुक और इंस्टाग्राम खातों को खोलने की अनुमति मांगी, ताकि कुछ तस्वीरों की प्रामाणिकता को सत्यापित किया जा सके, जिनसे पीड़िता ने जुड़े होने से इनकार किया था, और आरोप लगाया था कि उन्हें एडिट किया गया था और उसके सोशल मीडिया प्रोफाइल से प्राप्त किया गया था।
याचिकाकर्ता ने पीड़िता से जुड़ी एक ऑडियो रिकॉर्डिंग चलाने की अनुमति भी मांगी ताकि रिकॉर्डिंग में आवाज़ की प्रामाणिकता की पुष्टि की जा सके और अभियोजन पक्ष से इसकी सामग्री के बारे में पूछताछ की जा सके। हालाँकि, इस तरह की प्रार्थना को विशेष न्यायाधीश (अत्याचार), रायपुर ने खारिज कर दिया।
0 कोर्ट की टिप्पणी
Bilaspur High Court: सिंगल बेंच ने कहा कि निजता का अधिकार एक मानव अधिकार है, जो अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधियों में निहित है।गोपनीयता प्रत्येक मनुष्य का एक अधिकार है, जिसका वह अपने अस्तित्व के आधार पर आनंद उठाता है। यह अन्य पहलुओं जैसे शारीरिक अखंडता, व्यक्तिगत स्वायत्तता, राज्य की निगरानी से सुरक्षा, गरिमा, गोपनीयता आदि तक विस्तारित हो सकती है।
0 ट्रायल कोर्ट के फैसलेे को सही ठहराया
Bilaspur High Court: कोर्ट का मानना था कि ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता के सोशल मीडिया हैंडल की जांच करने की याचिकाकर्ता की प्रार्थना को सही तरीके से खारिज कर दिया है, क्योंकि इस तरह की पहुंच से उसकी निजता के अधिकार का हनन होने की संभावना है। इसके अलावा, इसने माना कि तथ्यों के सवालों का निपटारा करना बीएनएसएस की धारा 528 (सीआरपीसी की धारा 482 के समान) के तहत अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है।