Bilaspur High Court: परिवीक्षाधीन कर्मचारियों के लिए हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, सिंगल बेंच के फैसले को डीबी ने किया खारिज…

Bilaspur High Court: बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि नियमित या स्वीकृत पद पर नियुक्त किसी परिवीक्षाधीन कर्मचारी को केवल यह कहकर सेवा से नहीं हटाया जा सकता कि उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में यह भी लिखा है कि हम मानते हैं कि याचिकाकर्ता बकाया वेतन का 50 प्रतिशत पाने का हकदार है।
दुर्ग जिला कोर्ट में स्टेनोग्राफर (हिन्दी) के पद पर परिवीक्षाधीन में कार्यरत दीशान सिंह ने सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए अपने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने 01.11.2022 को उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। जिला एवं सत्र न्यायाधीश, दुर्ग द्वारा पारित सेवा से हटाने के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट के सिंगल बेंच में रिट याचिका दायर की थी।
Bilaspur High Court: याचिकाकर्ता को अन्य 11 उम्मीदवारों के साथ जिला एवं सत्र न्यायाधीश, दुर्ग के न्यायालय के 20.03.2018 के आदेश के तहत स्टेनोग्राफर (हिंदी) के पद पर नियुक्त किया गया था। अपीलकर्ता का मामला यह है कि तृतीय व्यवहार न्यायाधीश दुर्ग के न्यायालय के पीठासीन अधिकारी, जहां अपीलकर्ता को उसके कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए भेजा गया था, ने उसके साथ 30.01.2019 को दुर्व्यवहार किया है, इसलिए, जिला न्यायाधीश, दुर्ग को शिकायत की गई थी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश, दुर्ग ने 05.08.2019 को ज्ञापन जारी कर आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता/अपीलकर्ता ने 01.02.2019 को शिकायत की फोटोकॉपी सीधे हाई कोर्ट की रजिस्ट्री के समक्ष भेजी है, जो कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण नियम), 1965 के नियम 3(3)(क)(ग) के अनुसार कदाचार है और छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 के नियम 10 के अंतर्गत दंडनीय है।
इसके बाद, याचिकाकर्ता को 3 दिनों के भीतर स्पष्टीकरण देने के लिए 05.08.2019 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिस पर याचिकाकर्ता ने 07.08.2019 को जवाब प्रस्तुत किया। बताया कि उसने हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय के साथ पत्राचार नहीं किया है। जवाब के बाद 27.08.2019 को दोबारा नोटिस जारी कर पूछा कि उसकी शिकायत रजिस्ट्रार जनरल को कैसे भेजी गई है तथा यह भी स्पष्ट करें कि शिकायत सीधे किसने भेजी है। नोटिस में चेतावनी दी गई कि स्पष्ट जवाब ना देने पर यह माना जाएगा कि शिकायत उनके द्वारा ही भेजी गई है। याचिकाकर्ता इस संबंध में जवाब प्रस्तुत नहीं कर पाया। 25.11.2019 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया कि क्यों न उनकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी जाए।
कर्मचारी नेता ने उसकी जानकारी के बगैर व्हाट्सएप ग्रुप में कर दिया पोस्ट
Bilaspur High Court: याचिकाकर्ता ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश दुर्ग को शपथ पत्र के साथ जानकारी देते हुए बताया कि कर्मचारी संघ के पदाधिकारी ने उससे शिकायत की प्रति मांगी थी। संघ के एक नेता ने उसी की फोटो ली है और उसे उसकी जानकारी और अनुमति के बिना व्हाट्सएप ग्रुप में पोस्ट कर दिया है। इसके बाद, शिकायत का प्रिंट आउट हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। वह सीधे रजिस्ट्रार जनरल को शिकायत भेजने में शामिल नहीं था।
0 डीजे दुर्ग ने सेवा से हटाने के लिए बताया ये कारण
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि नोटिस का जवाब देने के बाद 05.12.2019 को डीजे ने दोबारा स्पष्टीकरण मांगा। इसके बाद उसने फिर से जवाब पेश किया। जवाब पेश करने के 19 दिन बाद 24.12.2019 को डीजे ने उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं होने का कारण बताते हुए सेवा समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया।
0 डीजे के आदेश को हाई कोर्ट में दी थी चुनाैती
Bilaspur High Court: डीजे दुर्ग के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। दायर याचिका में कहा कि बिना जांच के उसे हटा दिया गया है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 का उल्लंघन है। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने डीजे दुर्ग के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया था। आदेश में सिंगल बेंच ने लिखा है कि मामले के संपूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों और विषय पर कानून पर विचार करते हुए, यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता परिवीक्षा पर है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर यदि आवश्यक न हो तो परिवीक्षाधीन की सेवाएं समाप्त की जा सकती है।
0 सिंगल बेंच के फैसले को हाई कोर्ट में दी चुनौती
सिंगल बेंच के फैसले को हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि
अभिलेखों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जिला न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को कई कारण बताओ नोटिस जारी किए और याचिकाकर्ता ने नोटिस में अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया। मामले में उचित जांच किए बिना याचिकाकर्ता को सेवा से हटा दिया गया जो कि कलंकपूर्ण और दंडात्मक प्रकृति का है। याचिकाकर्ता को स्टेनोग्राफर (हिंदी) के पद पर 20.03.2018 को नियुक्ति आदेश के तहत ऐसी नियुक्ति करने के लिए गठित समिति द्वारा रिक्त पद पर नियुक्त किया गया था।
Bilaspur High Court: याचिकाकर्ता तथा 11 अन्य की नियुक्ति 2 वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा पर है। अपीलकर्ता को अस्थायी आधार पर या सीमित अवधि के लिए नियुक्त नहीं किया गया था। अपीलकर्ता की नियुक्ति की प्रकृति नियमित आधार पर है, जो परिवीक्षा अवधि के संतोषजनक समापन पर उसकी पुष्टि के अधीन है, इसलिए, इस न्यायालय की राय में अपीलकर्ता को, जिसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्ति की उचित प्रक्रिया के बाद रिक्त और स्वीकृत पद पर नियुक्त किया गया है, यह उल्लेख करके हटाया नहीं जा सकता कि “उसकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है”।
0 डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में यह सब लिखा
0 प्रतिवादी संख्या दो डीजे दुर्ग को भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(2) के तहत प्रावधान का उल्लंघन करते हुए ऐसा आदेश पारित नहीं करना चाहिए था, इसके बजाय उन्हें अपीलकर्ता की समग्र कार्यप्रणाली को ध्यान में रखते हुए उसकी पुष्टि के समय उसकी उम्मीदवारी पर विचार करना चाहिए था या यदि आवश्यक हो तो कानून के अनुसार आरोप/आरोपों का बचाव करने का अवसर प्रदान करते हुए जांच कार्यवाही शुरू करनी चाहिए थी।
0 इस न्यायालय की राय में, केवल यह उल्लेख करके अपीलकर्ता को हटाना कि मामले के तथ्यों में जहां कुछ आरोप लगाए गए हैं, “उनकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है”, टिकने योग्य नहीं है।
Bilaspur High Court: रिट याचिका के अवलोकन से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से यह दलील नहीं दी है कि वह लाभकारी रूप से कार्यरत नहीं है या प्रतिवादी संख्या 2 के तहत उसे अपनी नौकरी के दौरान जो वेतन दिया जा रहा था, उससे कम वेतन पर कार्यरत है। हालाँकि, जब हमने माना कि अपीलकर्ता को सेवा से हटाना कानून के विपरीत है, तो हमें अपीलकर्ता के पिछले वेतन के अनुदान के दावे पर विचार करना उचित लगता है।
0 आम तौर पर, जिस कर्मचारी या कामगार की सेवाएं समाप्त कर दी जाती हैं और जो पिछला वेतन पाने का इच्छुक होता है, उसे या तो दलील देनी होती है या कम से कम न्यायाधिकरण या प्रथम दृष्टया न्यायालय के समक्ष यह बयान देना होता है कि वह लाभप्रद रूप से नियोजित नहीं था या कम वेतन पर नियोजित था। यदि नियोक्ता पूरा पिछला वेतन भुगतान से बचना चाहता है, तो उसे दलील देनी होगी और यह साबित करने के लिए ठोस सबूत भी पेश करने होंगे कि कर्मचारी/कामगार लाभप्रद रूप से नियोजित था और उसे सेवा समाप्ति से पहले मिलने वाले वेतन के बराबर वेतन मिल रहा था।