अघोरियों की अपनी एक अलग दुनिया होती है। इन्हें भगवान भोलेनाथ का परम भक्त कहा जाता है। सनातन धर्म में कई तरह के साधु-संत होते है। जिनमें से अघोरियों की दुनिया सबसे अलग और रहस्यमयी होती है। अघोरियों को सांसारिक मोह माया से दूर रहकर भगवान की शिव की आराधना में लीन रहते हुए देखा जाता है।
बता दें कि अघोरी भगवान शिव की तरह अपने ऊपर श्मशान की भस्म लगाते हैं और ज्यादातर समय तंत्र साधना करते हैं। इतना ही नहीं अघोरियों का ज्यादा से ज्यादा समय या तो तपस्या में व्यय होता है या फिर श्मशान में व्यय होता है। लेकिन क्या आप जानते है कि अघोरी अलग-अलग गुप्त मंदिरों में यह अनुष्ठान क्यों करते हैं। तो आइए जानते है आखिर क्यों अघोरी अलग-अलग मंदिरों में अनुष्ठान करते है।
भैरव अवतार को मानते है गुरु
माना जाता है कि अघोरी, माता काली और भगवान शिव के भैरव अवतार को अपना गुरु मानते हैं। जिस तरह से भगवान शिव और माता काली अपने शरीर पर मुंडों की माला यानी कपाल धारण करते हैं। उसी तरह से अघोरी भी मुर्दों का कपाल पहनते हैं। साथ ही अपने शरीर पर श्मशान की भस्म भी लगाते है।
केवल भगवान शिव में भरोसा
आमतौर पर अघोरी दिन में नजर नहीं आते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि और कुंभ जैसे धार्मिक अवसरों पर ये अपने समूह में देखे जा सकते हैं। ये पुनर्जन्म के चक्र से मोक्ष प्राप्त करने के लिए तपस्या में लीन रहते हैं। इसलिए अघोरियों के दर्शन पाना काफी मुश्किल होता है। अघोरी भगवान शिव के अलावा किसी अन्य हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करने में विश्वास नहीं रखते हैं।
अघोरी तंत्र साधना के प्रसिद्ध मंदिर
हमारे देश में पूजा-पाठ का बहुत महत्व है। जिसके लिए लोग मंदिर जरूर जाते हैं, लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जो अघोरी तंत्र-साधना के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। नेपाल के काठमांडू में स्थित अघोर कुटी अघोरी तंत्र-साधना के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां अघोरी अपनी तंत्र साधना में लीन होते हैं। माना जाता है कि यह स्थान भगवान राम के अनन्य भक्त बाबा सिंह शाक द्वारा तैयार किया गया था। तब से यह काफी प्रसिद्ध है।
कालीमठ शक्तिपीठ में बसते हैं
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। ऐसे में वहां स्थित काली मठ उन शक्तिपीठों में से एक है। जहां देवी सती का पिंड गिरा था। धार्मिक मान्यताएं हैं कि कई अघोरी बाबा देश की यात्रा करने के बाद अंत में यहां आकर बसते हैं। काली मठ मंदिर स्थान तंत्र और साधनात्मक दृष्टिकोण से कामाख्या और ज्वालामुखी के समान अत्यंत ही उच्च कोटि का है।
तारापीठ भी है काफी मशहूर
पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट में बना छोटा सा मंदिर तारापीठ अघोरी बाबाओं को लेकर काफी मशहूर है। यह मंदिर तांत्रिक मंदिर के रूप में काफी माना जाता है। इस मंदिर में देवी सती को तारा देवी के रूप में पूजा जाता है। यहां मंदिर के बगल में स्थित श्मशान घाट में अघोरी तांत्रिक अनुष्ठान करते हैं। पागल संत के नाम से मशहूर साधक बामखेपा इसी मंदिर में पूजा करते थे। माना जाता है कि उन्होंने इसी श्मशान घाट में रहकर कई तांत्रिक कलाओं पर सिद्धि प्राप्त की थी।
इस मंदिर में अनुष्ठान करते हैं अघोरी बाबा
कपालेश्वर मंदिर तमिलनाडु के शहर मदुरै में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। माना जाता है कि मंदिर के पास एक आश्रम है। जहां अघोरियों के सभी अनुष्ठान किए जाते हैं। कपालेश्वर मंदिर का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है कपा (सिर) और अलेश्वर (शिव का उपनाम)। जिसकी वजह से इस मंदिर का बेहद खास महत्व है।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर में दर्शन है जरूरी
कहते है कि अघोरियों की साधना तब तक पूरी नहीं होती है, जब तक मां काली का वरदान उन्हें नहीं मिलता है। कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यह कोलकाता के कालीघाट के पास स्थित है। मान्यता है कि देवी सती की मृत्यु के बाद उनके बाएं पैर की चार अंगुली इसी स्थान पर गिरी थी, इसलिए मोक्ष पाने और तंत्र साधना के लिए देशभर से अघोरी यहां आते हैं।
तंत्र साधना
अफगानिस्तान के पूर्व शासक शाह जहीर शाह के पूर्वजों ने काबुल शहर के मध्य भाग में कई एकड़ में फैला जमीन का एक टुकड़ा कीनारामी परंपरा के संतों को दान में दिया था। इसी जमीन पर आश्रम बनाए गए। औघड़ रतनलालजी यहां पीर के रूप में आदर पाते हैं। इनकी समाधि और अन्य औघड़ों की समाधियां इस स्थल पर मौजूद हैं, इसलिए तब से कई अघोरी उनके रास्ते पर चलते आ रहे हैं और यहां तंत्र साधना करते हैं।