जब एक रेडियो ने हिला दी थीं ब्रिटिश हुकूमत की चूलें, गुमनाम नायकों की कहानी

मुंबई : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत नौजवानों ने हिस्सा लिया था और देश की आजादी के लिए कुर्बानियां दी थीं। इनमें महात्मा गांधी सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह जैसे नायकों को सारा देश जानता है, मगर बहुत से ऐसे भी हैं, जिनका योगदान बड़े नेताओं के साये में कहीं दबकर रह गया।

ऐसे ही गुमनाम नायकों को समर्पित है प्राइम वीडियो की फिल्म ए वतन मेरे वतन। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली गांधीवादी क्रांतिकारी उषा मेहता की इस बायोपिक में उस दौर की नौजवान पीढ़ी के जज्बे और जुनून की कहानी दिखाई गई है, जो खास तौर पर महात्मा गांधी की विचारधारा से प्रेरित थी।

ए वतन मेरे वतन सीक्रेट कांग्रेस रेडियो के बनने और इसके जरिए देशवासियों से संवाद करने की कोशिशों और ब्रिटिश सरकार के इस रेडियो तक पहुंचकर इसे बंद करवाने की कहानी दिखाती है।

आजादी की लड़ाई को केंद्र में रखकर हिंदी सिनेमा में काफी फिल्में बनी हैं, जो रोंगटे खड़े कर देती हैं। कन्नन अय्यर निर्देशित ए वतन मेरे वतन उस लिस्ट को सिर्फ लम्बा करती है, कोई खास असर नहीं छोड़ती। फिल्म में ऐसे पल कम ही आते हैं, जब रोमांच शीर्ष पर पहुंचे।

क्या है उषा मेहता पर बनी फिल्म की कहानी?

बम्बई (मुंबई) में रहने वाले जज हरिप्रसाद मेहता की बेटी उषा मेहता बचपन से ही गांधीवाद से प्रेरित है और देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के लिए जुनून से भरी हुई है। आंखों के सामने अंग्रेजों के जुल्म उसके इरादे को मजबूती देते हैं। हालांकि, ब्रिटिश सरकार की चाकरी करते हुए सुविधाओं का लुत्फ उठा रहे जज पिता हरिप्रसाद मेहता (सचिन खेड़ेकर) को बेटी का क्रांतिकारी स्वभाव अखरता है।

उषा पिता की झूठी सौगंध खाकर गुप्त रूप से कांग्रेस से जुड़ी रहती है। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और कांग्रेस ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सबसे बड़े आंदोलन अंग्रेजों भारत छोड़ो की घोषणा करते हैं और देशवासियों को करो या मरो का नारा देते हैं।

अंग्रेजी सरकार इस आंदोलन की ताकत भांप लेती है और गांधी समेत सभी बड़े नेताओं को जेल में बंद कर देती है, ताकि आंदोलन को कुचला जा सके। संवाद के सारे रास्ते बंद होने के बाद अंडरग्राउंड कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मदद से उषा अपने प्रेमी कौशिक और दोस्त फहद की मदद से बम्बई के बाबुलनाथ में सीक्रेट रेडियो स्टेशन शुरू करती है, जहां से नेताओं के भाषणों के जरिए अलख जगाये रखती है।

स्वतंत्रता सेनानी राम मनोहर लोहिया इस स्टेशन के जरिए पूरे देश में क्रांति की ज्वाला सुलगाते हैं। दूसरे विश्व युद्ध की आहट से परेशान ब्रिटिश हुकूमत किसी भी कीमत पर इसे बंद करना चाहती है।

कैसा है ए वतन मेरे वतन का स्क्रीनप्ले?

दारब फारुकी और कन्नन अय्यर लिखित ए वतन मेरे वतन की कथाभूमि मुख्य रूप से 30-40 के दौर की बम्बई है, जहां उषा अपने पिता और उनकी वयोवृद्ध बुआ के साथ रहती है। फिल्म  उषा मेहता की निजी जिंदगी में ज्यादा ताकझांक नहीं करती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button