शिवपुराण में उल्लिखित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से पांचवां है केदारनाथ धाम। यह उत्तराखंड में अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के तट पर केदार नाम की चोटी पर स्थित है। यहां शिवलिंग का आकार, बैल की पीठ के समान त्रिकोणाकार है। यहां से पूर्वी दिशा में श्री बद्री विशाल का बद्रीनाथधाम मंदिर है। केदारनाथ धाम, ज्योतिर्लिंग होने के साथ ही चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। मान्यता है कि यहां मंदिर का निर्माण पांडवों के वंशज जनमेजय ने कराया था। फिर बाद में आदि शंकराचार्य जब यहां आए, तो उन्होंने इसका जीर्णोद्धार कराया। मंदिर के पास ही शंकराचार्य का समाधि स्थल भी है। यहां स्थित बाबा भैरवनाथ का मंदिर भी विशेष महत्व रखता है।
मंदिर की विशेषता
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग की हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह प्राचीन है जिसे 80वीं सदी के लगभग का माना जाता है । केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। इस एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ हो तो दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड है।
यह भी जानें
सनातन धर्म में केदारनाथ को अद्भुत ऊर्जा का केंद्र माना गया है। यहां पांच नदियों मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का संगम होता है। इनमें कुछ नदियां अब विलुप्त हो चुकी हैं।
ऐसी मान्यता है कि यहां पांडवों को भगवान शिव का आशीर्वाद मिला था। इसके बाद पांडवों को भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति मिल गई थी।
हर साल भैरव बाबा की पूजा के बाद ही मंदिर के कपाट बंद और खोले जाते हैं। मान्यता है कि मंदिर के पट बंद होने पर भगवान भैरव इस मंदिर की रक्षा करते हैं।
माना जाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसे यात्रा का फल नहीं मिलता।
कब कैसे पहुंचें?
पहाड़ियों से घिरा केदारनाथ तीर्थ दिल्ली से 458 किमी, और ऋषिकेश से 189) किमी दूर है। आप हरिद्वार, कोटद्वार, देहरादून तक ट्रेन के जरिए भी जा सकते हैं। उसके बाद बस या प्राइवेट गाड़ियों से जाया जा सकता है। मंदिर केवल अप्रैल (अक्षय तृतीया) और नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा) के महीनों के बीच तीर्थ यात्रियों के लिए खुला रहता है। शीत ऋतु के दौरान जब केदारनाथ के कपाट बंद किए जाते हैं, तो भगवान को पालकी से उखीमठ लिया जाता है। 6 महीने तक भोलेनाथ के दर्शन उखीमठ में ही किए जाते हैं।