सनातन धर्म में किसी भी धार्मिक कार्य के दौरान हाथ में अक्षत लेकर कलावा बांधा जाता है। पंडित या पुरोहित कलेवे को तीन बार घुमाकर ही बांधते हैं। शास्त्रों में कलावा बांधने की शुरुआत को लेकर उल्लेख दिया हुआ है। ऐसा बताया गया है कि कलावा बांधने की शुरुआत लक्ष्मी जी ने और राजा बलि ने की थी। इसके बाद से ये परंपरा आज तक चली आ रही है। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों किया जाता है ? आइये हम आपके इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है।
क्यों लपेटा जाता है कलावा
पूजन के दौरान पंडित द्वारा कलेवे को तीन बार लपेटकर बांधा जाता है। शास्त्रों के अनुसार कलावे की तीन तहें त्रिदेवियों के वास को दर्शाती हैं। कलवे के प्रत्येक चक्कर में देवी का वास होता है। पहली बार कलेवा लपेटते समय मां सरस्वती का वास होता है। वहीं दूसरी बार कलेवा लपेटते समय मां लक्ष्मी का वास होता है तो वहीं तीसरी बार कलेवा लपेटते समय मां पार्वती का वास होता है। वहीं कहा ये भी जाता है माना जाता है कि कलावे को गांठ बांधते समय त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, जिसके चलते इन तीनों का आशीर्वाद भी मिलता है।
कलावा बांधते समय रखें इन बातों का ध्यान
-अविवाहित कन्याओं को अपने दाएं हाथ में कलावा बंधवाना चाहिए।
-विवाहित महिलाओं को अपने बाएं हाथ में कलावा बंधवाना चाहिए।
– कलावा बंधवाते वक्त मुट्ठी को बंद रखना चाहिए साथ ही दूसरे हाथ को सिर पर रखना चाहिए।