कब है रंभा तीज, जानिए सुहागिन और कुंवारी लड़कियों के लिए क्यों है फलदायी

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तृतीया या रंभा तीज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए व्रत रखती हैं, तो वहीं सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के लिए व्रत रखकर पूजा-पाठ करती हैं। सौंदर्य और सौभाग्य का व्रत रंभा तीज इस साल 21 मई को रहेगा। इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार कर व्रत का संकल्प लेकर भगवान शिव, माता पार्वती और लक्ष्मी माता की पूजा करती हैं। इस दिन रंभा अप्सरा को याद किया जाता है। रंभा तीज का व्रत रखने से संतान, पति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही महिलाएं भी स्वस्थ रहती है। इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानते हैं इस व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व।

तिथि-

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 21 मई को रात 10 बजकर 9 मिनट से शुरू होगी और 22 मई को रात 11 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के हिसाब से रंभा तीज का व्रत 22 मई को रखा जाएगा।

रंभा तीज पर शुभ योग-

द्विपुष्कर योग – 21 मई को सुबह 9:04 मिनट से रात 10:09 मिनट तक

अमृतसिद्धि योग – 22 मई को सुबह 5:47 मिनट से 10:37 मिनट तक

सर्वार्थ सिद्धि योग – 22 मई को सुबह 5:47 मिनट से 10:37 मिनट तक

रंभा तीज का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार रंभा तीज का नाम स्वर्ग की सबसे खूबसूरत कही जाने वाली अप्सरा रंभा के नाम पर पड़ा है। रंभा स्वर्गलोक की सबसे सुंदर अप्सरा थीं और उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। रंभा तीज के दिन रंभा देवी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच लड़ाई हुई थी, तो समुद्र मंथन हुआ था। समुद्र मंथन में कुल 14 रत्न निकले थे। इन्हीं रत्नों में से एक रंभा थी। इसलिए रंभा को देवलोक में स्थान मिला था।

रंभा तीज की पूजा

रंभा तीज के दिन सुबह उठकर स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। इस दिन सूर्य देव के लिए दीपक प्रज्जवलित किया जाता है। महिलाएं मां लक्ष्मी की पूजा करती हैं। पूजा में गेंहू, अनाज और फूल शामिल किए जाते हैं। मां लक्ष्मी और माता सीता को प्रसन्न करने के लिए पूरे मनोभाव से पूजा की जाती है। अप्सरा रंभा देवी को इस दिन विशेषकर पूजा जाता है। इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है।

इन मंत्रों का जाप

भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने के बाद हाथ में अक्षत लेकर इन मंत्रों का जाप करें।

ॐ दिव्यायै नमः

ॐ वागीश्चरायै नमः

ॐ सौंदर्या प्रियायै नमः

ॐ योवन प्रियायै नमः

ॐ सौभाग्दायै नमः

ॐ आरोग्यप्रदायै नमः

ॐ प्राणप्रियायै नमः

ॐ उर्जश्चलायै नमः

ॐ देवाप्रियायै नमः

ॐ ऐश्वर्याप्रदायै नमः

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