पूजा से पहले आचमन करने का क्या है महत्व? जानिए विधि और कारण

पूजा शुरू होने से पहले आचमन किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आचमन करने की परंपरा क्यों है और इसका महत्व क्या है। किसी भी प्रकार की पूजा की जाती है, तो उसमें आचमन जरूर किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि आचमन न करने से पूजा का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है। ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं।

पूजा के दौरान आचमन करना मतलब पवित्र जल का सेवन करके मन और हृदय को शुद्ध करना है। पूजा, यज्ञ आदि जैसे धार्मिक या शुभ अनुष्ठान शुरू करने से पहले शुद्धि के लिए मंत्रों का जाप करने के साथ जल पिएं। इसे ही आचमन कहा जाता है।

क्यों किया जाता है आचमन?

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ में आचमन महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रंथों में आचमन का महत्व विस्तार से बताया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, आचमन करने के बाद जल में भिगोए हुए दाहिने हाथ के अंगूठे से मुंह का स्पर्श करने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन के बाद मस्तिष्क का अभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

ऐसा माना जाता है कि आचमन करके दोनों आंखों को छूने से सूर्य तृप्त होता है। वहीं, नासिका को छूने से वायु तृप्त होती है और कानों को छूने से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं। इसलिए पूजा से पहले आचमन करने का महत्व बताया गया है।

इस विधि से करें आचमन

पूजा शुरू करने से पहले पूजा संबंधी सभी सामग्री पूजा स्थल पर रखें। अब एक साफ तांबे के पात्र या लोटे में पवित्र गंगा जल या पीने का पानी जरूर रखें। अब इस पानी के बर्तन या मटके में तुलसी की पत्तियां डाल दें। पानी निकालने के लिए बर्तन में तांबे का एक चम्मच रखें। अब इस लोटे या पात्र में तुलसी के पत्ते जरूर डालें। एक छोटी सी आचमनी यानी तांबे की छोटी सी चम्मच को जल निकालने के लिए रखें।

आचमन के लिए आचमनी से थोड़ा सा जल हाथों पर तीन बार लें और अपने इष्टदेव, देवता गण और नवग्रहों का ध्यान करते हुए उसे ग्रहण करें। यह जल आचमन कहलाता है। जल ग्रहण करने के बाद अपने हाथ को माथे और कान से लगाएं। फिर जल को हथेली पर लेकर तीन बार मंत्र उच्चारण करते हुए जल ग्रहण करें।

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