1940 के दशक में सिनेमा की जादुई दुनिया को दिखाती है ‘जुबली’ वेब सीरीज की कहानी

मुंबई : विक्रमादित्‍य मोटवानी की वेब सीरीज ‘जुबली’ की कहानी हिंदी सिनेमा के गोल्‍डन एरा में बसी है। ‘जुबली’ 1940 के दशक में सिनेमा की जादुई दुनिया को दिखाती है, जब सिल्वर स्क्रीन पर टॉकीज के कल्‍चर का बोलबाला था। कहानी दिखाती है कि कैसे एक आदमी देश का अगला सुपरस्टार बनने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। स्‍टारडम की उसकी यह यात्रा, कुछ चौंकाने वाले और तबाही वाले परिणाम लेकर आती है।

1940 के दशक में सिनेमा जगत की दिलचस्प कहानी

‘जुबली’ की कहानी को बड़े ही प्‍यार, जुनून, राजनीति, नफरत और गला-काट प्रतियोग‍िता के इर्द-गिर्द बुना गया है। यह सब सेपिया-टोंड फ्रेम में किसी कविता की शूट किया गया है। एक ऐसा दौर जब हिंदी फिल्म इंडस्‍ट्री में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे थे। रॉय टॉकीज के मालिक श्रीकांत रॉय (प्रोसेनजीत चटर्जी) अपने अगले पोस्टर बॉय और सुपरस्टार मदन कुमार की तलाश कर रहे हैं।

उनके पास प्रतिभा को पहचानने के लिए बाज की नजर है। वह सामने वाले को देखकर उसके मन को पढ़ने की काबिलयत रखते हैं। श्रीकांत रॉय की जिंदगी में बहुत करीबी लोग नहीं हैं। एक बीवी है, जिसका नाम सुमित्रा है और वह एक सुपरस्‍टार है। एक स्‍पॉटबॉय भी है बिनोद दास (अपारशक्ति खुराना), जो छोटे शहर से है, चतुर-चालाक है। बिनोद की बीवी है रत्‍ना (श्‍वेता बसु प्रसाद) और एक बेटा है।

जिंदगी बदल देने वाली एक घटना में फंस जाता है एक्टर

कहानी आजादी से पहले के भारत की है, ऐसे में पाकिस्तान अभी भी हिंदुस्‍तान का हिस्‍सा है। लेकिन लंबे समय तक ऐसा नहीं रहता, क्योंकि अब देश का बंटवारा होने वाला है। सिनेमा और रेडियो, देश में मनोरंजन और सूचना के लिए सिर्फ यही दो जन माध्यम हैं। इन सबके बीच, एक तवायफ नीलोफर कुरैशी (वामिका गब्बी) है और एक शरणार्थी लड़का जय खन्ना (सिद्धांत गुप्ता), जिसकी जिंदगी भी श्रीकांत रॉय से टकराती है। जय को भी एक एक्‍टर और फिल्‍ममेकर बनना है, लेकिन वह जिंदगी बदल देने वाली एक घटना में फंस जाता है।

‘जुबली’ वेब सीरीज रिव्‍यू

वेब सीरीज को बड़े ही परफेक्‍शन और जबरदस्‍त डिटेलिंग के साथ बनाया गया है। इस मामले में विक्रमादित्‍य मोटवानी की मेहनत पहले सीन से ही दिखती है। उन्‍होंने हर सीन और किरदार पर ध्‍यान दिया है। इन क‍िरदारों में प्‍यार भी है, वो मजबूत भी हैं और अंदर ही अंदर कांच की तरह कमजोर भी। ये वे लोग हैं जिन्होंने इंडस्‍ट्री के निर्माण में महत्‍वपूर्ण भूम‍िका निभाई है। ये किरदार कहानी के मुताबिक, खबरों में बने रहते हैं, लेकिन इनके अपने गहरे रहस्‍य भी हैं। इनमें दर्शकों का मनोरंजन करने और उन्‍हें मंत्रमुग्ध करने क्षमता है।

मोटवानी के को-क्रिएटर सौमिक सेन हैं और लेखक अतुल सभरवाल। इन तीनों की तिकड़ी हमें ऐसे काल्पनिक किरदार देते हैं, जो उस दौर के असली एक्‍टर्स और फिल्‍ममेकर्स की तरह हैं। इन किरदारों का उस दौर के असली एक्‍टर्स और मेकर्स से समानताएं निकालना आसान है और इसलिए जब आप पर्दे पर उनके जीवन और समय के बारे में कुछ रोचक देखते हैं तो यह किस्‍सा दिलचस्प बन जाता हैं। वेब सीरीज की कहानी किसी भी सिनेमा प्रेमी को आज के दौर में भी प्रासंगिक लग सकती है।

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