गूंज उठी पहाड़ी मैना की चहचहाहट : बस्तर में संरक्षण की पहल अब रंग लाने लगी, मैना मित्रों की पहल से जंगलों में बढ़ी संख्या

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में पहाड़ी मैना संरक्षण की अनूठी पहल ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। वर्ष 2002 में इस पक्षी को राज्य पक्षी घोषित करने के बाद, इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयास निरंतर जारी हैं। विशेष रूप से कुछ वर्ष पहले छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा ग्रामीण समुदाय को रोजगार प्रदान करने एवं संरक्षण में भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ह्यमैना मित्र के रूप में स्थानीय युवाओं को जोड़ा गया।

पहाड़ी मैना को राज्य पक्षी घोषित किया गया, जिसके बाद इसके संरक्षण की आवश्यकता को लेकर वन विभाग सक्रिय हुआ। हालांकि वास्तविक संरक्षण प्रयासों को गति पिछले कुछ वर्षों में मिली, जब वन विभाग ने स्थानीय युवाओं को मैना मित्र के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया। इसके तहत 10 स्थानीय युवाओं को चयनित किया गया, जिनका मुख्य कार्य पहाड़ी मैना की निगरानी, घोंसलों की सुरक्षा और समुदाय में जागरूकता फैलाना है। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में पहाड़ी मैना के संरक्षण की यह पहल वन्यजीव संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी की एक शानदार मिसाल बनी है।

सीनियर रिसर्च फेलो ने निभाई बड़ी भूमिका

ग्रामीण युवाओं की सहभागिता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वन विभाग के प्रयासों के कारण इस दुर्लभ पक्षी की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। यदि यह प्रयास इसी गति से चलता रहा, तो निकट भविष्य में बस्तर पहाड़ी मैना के लिए एक सुरक्षित और समृद्ध आवास बन सकता है। इसके साथ ही आंकड़ों के संग्रह एवं विश्लेषण के लिए सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में युगल कुमार को चयनित किया गया, जो वन्यजीव एवं वानिकी में विशेषज्ञता रखते हैं और समुदाय के साथ मिलकर कार्य करने का अनुभव भी प्राप्त है।

50-60 के झुंड में उड़ते देखे गए पहाड़ी मैना

पहले यह पक्षी मुख्य रूप से कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में 10 से 12 स्थानों पर ही देखा जाता था, लेकिन मैना मित्रों की सतत निगरानी और जागरूकता अभियानों के परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 तक इनकी संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और 50-60 के झुंड में उड़ते देखे गए। वर्ष 2024 तक पहाड़ी मैना की उपस्थिति बस्तर के 25 से अधिक गांवों में दर्ज की गई। घोंसलों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है, जिससे इनके संरक्षण को लेकर सकारात्मक संकेत मिले हैं। अब यह पक्षी कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान से सटे 35 गांवों, बस्तर वन मंडल के माचकोट क्षेत्र, कोंडागांव जिले के कुछ हिस्सों, सुकमा जिले के कई स्थानों, दंतेवाड़ा के बचेली क्षेत्र और ओडिशा के मलकानगिरी डिवीजन में भी देखे जा रहे हैं।

संभावित खतरों की पहचान

उद्यान से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्थानीय युवाओं की भागीदारी से मैना मित्र के रूप में ग्रामीण युवकों को रोजगार देकर संरक्षण कार्य में शामिल किया गया। निगरानी और घोंसलों की सुरक्षा, नियमित सर्वेक्षण, घोंसलों का संरक्षण और संभावित खतरों की पहचान की गई। सामुदायिक जागरूकता अभियान में स्थानीय ग्रामीणों को पहाड़ी मैना के महत्व, उसके संरक्षण की आवश्यकता और पर्यावरण संतुलन में इसकी भूमिका के बारे में शिक्षित किया गया। वैज्ञानिक अध्ययन एवं आंकड़ों का विश्लेषण से वन्यजीव शोधकर्ता द्वारा पक्षी की संख्या, व्यवहार और फैलाव पर निरंतर अध्ययन किया जा रहा है।

पहाड़ी मैना के व्यवहार व प्रवास पर होगी नजर

बताया जा रहा है कि पहाड़ी मैना के व्यवहार और माइग्रेशन पैटर्न को समझने के लिए सैटेलाइट टेलीमेट्री टैगिंग का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इस आधुनिक तकनीक के माध्यम से वैज्ञानिक आने वाले समय में इस दुर्लभ पक्षी की गतिविधियों और मूवमेंट पर सटीक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। पहल संरक्षण प्रयासों को और अधिक सशक्त बनाने में मदद करेगी। विशेषज्ञों का मानना कि सैटेलाइट ट्रैकिंग से प्राप्त आंकड़े न केवल पहाड़ी मैना की बेहतर समझ में सहायक होंगे, बल्कि इसके संरक्षण के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाएंगे। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी मैना की नेस्टिंग पर विशेष ध्यान, आग की घटनाओं की रोकथाम पर भी सतर्कता रहे।

अपनाए जा रहे संरक्षण उपाय

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान निदेशक चूड़ामणि सिंह ने बताया कि पहाड़ी मैना के घोंसले बनाने की गतिविधियों पर नजर रखते हुए संरक्षण संबंधी उपाय तेजी से अपनाए जा रहे हैं। उद्यान में पहाड़ी मैना का नेस्टिंग सीजन शुरू हो चुका है। इस महत्वपूर्ण समय को देखते हुए पार्क प्रबंधन सतर्कता के साथ कार्य कर रहा है। इसके साथ ही गर्मी के मौसम में जंगलों में आग लगने की संभावनाओं को देखते हुए अग्नि घटनाओं की रोकथाम पर भी विशेष जोर दिया गया है। उद्यान के मैदानी कर्मचारी पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ फील्ड में कार्यरत हैं, ताकि न केवल पक्षियों का प्राकृतिक आवास सुरक्षित रह सके, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। प्रबंधन का कहना है कि पहाड़ी मैना जैसे दुर्लभ पक्षियों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।

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