नियमों का हवाला : रायगढ़ मेडिकल कॉलेज जूनियर रेसिडेंट का पद कर रहा सरेंडर, संकट में आए 17 डॉक्टर

रायपुर। रायगढ़ के शासकीय मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेसिडेंट का पद सरेंडर करने चिकित्सा शिक्षा आयुक्त को भेजे गए पत्र से हड़कंप मच गया है। पत्र में तर्क दिया गया है कि एनएमसी के नियम के अनुसार पीजी डाक्टरों को ही जेआर के रूप में मान्य किया गया है। कालेज में पीजी की काफी पर्याप्त संख्या है, इसलिए  चिकित्सा अधिकारी स्तर के जूनियर रेसिडेंट की आवश्यकता नहीं है। इससे कालेज पर वेतन और भत्ते के रूप में आने वाले खर्च की भी बचत होगी।

मेडिकल कालेज के डीन द्वारा भेजे गए इस पत्र से एमबीबीएस के बाद जूनियर रेसिडेंट के रूप में रायगढ़ मेडिकल कालेज मे पदस्थ किए 17 चिकित्सा अधिकारियों की नियुक्ति खतरे में आ गई है, जिससे बचने के लिए वे राजधानी आकर शिकायत करने की तैयारी में हैं।रायगढ़ के श्री लखीराम अग्रवाल स्मृति शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में जूनियर रेसिडेंट वेतनमान लेबल 12 के 55 पद सृजित हैं। वर्तमान में यहां नियमित और संविदा तथा बांडेड आधार पर 23 डाक्टर कार्यरत हैं। मेडिकल कालेज के डीन द्वारा भेजे गए पत्र में उल्लेख किया गया है, एनएमसी पीजी पाठ्यक्रम में अध्ययनरत छात्रों को रेसिडेंट चिकित्सा के रूप में मान्य करती है। इस हिसाब से महाविद्यालय में सृजित नियमित जूनियर रेसीडेंट (चिकित्सा अधिकारी) के पद की आवश्यकता नहीं है। इसलिए इन पदों को सरेंडर किया जाए। तर्क दिया गया है कि इन जूनियर डाक्टरों को हटाए जाने के बाद प्रतिमाह दिए जाने वाले इनके वेतन-भत्ते की राशि की बचत होगी, जिसका उपयोग महाविद्यालय में संचालित पीजी पाठ्यक्रम में अध्ययनरत छात्रों को स्टाइपेंड के रूप में किया जा सकेगा।

 

स्थानीय चिकित्सकों को परेशानी

 

छत्तीसगढ़ डाक्टर फेडरेशन ने इस पर आपत्ति जताई है। अध्यक्ष डा. हीरा सिंह ने कहा कि कि मेडिकल कालेज से संबंधित अस्पतालों में इलाज का अत्यधिक भार होता है। पीजी छात्रों को इलाज के साथ अपनी पढ़ाई भी करनी होती है। एमबीबीएस स्तर के जूनियर रेसिडेंट उपचार व्यवस्था में सहायक होते हैं। पद सरेंडर किए जाने के प्रस्ताव का विरोध किया जाएगा।

दूसरे कालेजों में भेजने की सिफारिश

चिकित्सा शिक्षा आयुक्त को भेजे गए पत्र में यह भी सुझाव दिया गया है कि जूनियर रेसिडेंट पद पर कार्यरत नियमित चिकित्सकों को उन नए मेडिकल कालेजों में स्थानांतरित किया जाए, जहां स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम का संचालन नहीं किया जा रहा है। अथवा स्वास्थ्य सेवाओं के सेटअप में आने वाले चिकित्सकीय संस्थाओं में इनका उपयोग किया जाए।

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