घर के सामने ट्रांसफार्मर बना खतरा, हटाने के लिए मांग रहे डेढ़ लाख रुपये, जबकि योजना में है फ्री शिफ्टिंग का प्रावधान

रायपुर। राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के अन्य शहरी इलाकों में गर्मी बढ़ते ही ट्रांसफार्मरों में आग लगने का खतरा भी तेजी से बढ़ जाता है। खासकर वे ट्रांसफार्मर जो सीधे लोगों के घरों के सामने या संकरी गलियों में लगे हैं, वहां हादसे की आशंका और भी बढ़ जाती है। इसके बावजूद जब लोग इन्हें हटवाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री शहरी विद्युतीकरण योजना के तहत मिलने वाली “फ्री शिफ्टिंग” की सुविधा से वंचित कर दिया जाता है और उल्टे 1.5 लाख रुपये तक का खर्चा थमा दिया जाता है।
50 से अधिक आवेदन, केवल 15 पर ही हुई कार्रवाई
पिछले दो वर्षों में रायपुर नगर निगम क्षेत्र में 50 से अधिक लोगों ने ट्रांसफार्मर हटाने के लिए आवेदन दिए, लेकिन केवल 15 मामलों को ही जिला स्तरीय समिति तक भेजा गया। इन 15 प्रस्तावों में भी ज्यादातर विधायक, सांसद, मंत्री या पार्षदों की सिफारिश पर भेजे गए थे। आम जनता की ओर से भेजे गए अधिकांश आवेदन या तो फाइलों में दब गए या बिना कारण निरस्त कर दिए गए।
गरीब मोहल्लों में सबसे ज्यादा दिक्कत
खासकर कुशालपुर, प्रोफेसर कॉलोनी, पुरानी बस्ती, खोखोपारा, गुढ़ियारी, बजरंग नगर, लाखेनगर, आमापारा, कुकरीपारा, बांसटाल, शास्त्रीबाजार और बैजनाथपारा जैसे पुराने और घनी आबादी वाले मोहल्लों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है। यहां गलियां तंग हैं और ट्रांसफार्मर घरों से चिपके हुए लगे हैं, जिससे गर्मी में आग लगने का डर बना रहता है। कई बार बच्चे खेलने के दौरान ट्रांसफार्मर से टकरा जाते हैं, जिससे हादसों की आशंका बनी रहती है।
योजना है, लेकिन लागू नहीं हो रही पारदर्शिता से
मुख्यमंत्री शहरी विद्युतीकरण योजना के तहत यह प्रावधान है कि यदि किसी ट्रांसफार्मर की वजह से लोगों की जान या संपत्ति को खतरा है, तो उसे शिफ्ट किया जा सकता है और उसका खर्च सरकार उठाएगी। इसके लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है, जिसमें नगर निगम कमिश्नर, पीडब्ल्यूडी, टाउन प्लानिंग और बिजली कंपनी के अधिकारी शामिल होते हैं।
समिति हर महीने बैठक करती है और निगम के माध्यम से आए आवेदन पर निर्णय लिया जाता है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि जब तक आवेदन राजनीतिक सिफारिश या उच्च स्तर से न हो, तब तक उन पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती। यही वजह है कि कई सामान्य नागरिकों के आवेदन या तो लटकाए जा रहे हैं या उन्हें सीधे-सीधे शुल्क भरने का विकल्प बताया जा रहा है।
पीड़ितों की व्यथा: “सर्वे के बाद थमा दिया डेढ़ लाख का बिल”
ऐसे ही एक मामले में एक पीड़ित ने बताया कि उसने निगम में आवेदन देकर ट्रांसफार्मर हटाने की गुहार लगाई थी। बिजली विभाग की टीम आई, सर्वे किया और फिर बिना कोई चर्चा किए सीधे डेढ़ लाख रुपये का बिल थमा दिया। इस तरह की स्थिति एक-दो नहीं, बल्कि कई परिवारों के साथ है जो निगम और बिजली कंपनी के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन समाधान नहीं मिल रहा।
व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक हित के आवेदन ही होते हैं स्वीकृत
समिति आमतौर पर उन्हीं आवेदनों को स्वीकृति देती है, जिनसे बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हों। एक या दो घरों के सामने लगे ट्रांसफार्मरों को हटाने की मांग को समिति गंभीरता से नहीं लेती। इस कारण बहुत से व्यक्तिगत आवेदकों को योजना का लाभ नहीं मिल पाता, जबकि असल खतरा ऐसे ही मामलों में ज्यादा होता है।