सुकमा। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में संचालित आवासीय शालाओं में प्रबंधन की लापरवाही से लगातार बच्चों की मौत के मामले प्रकाश में आ रहे हैं। ताजा मामला छिंदगढ़ ब्लॉक के बाला टिकरा में संचालित कन्या आवासीय पोटाकेबिन विद्यालय का है। यहां दूसरी कक्षा में पढ़ रही छात्रा की अज्ञात बीमारी से मौत हो गई। सोमवार की सुबह प्रार्थना के बाद छात्रा की तबीयत अचानक बिगड़ने पर उसे अस्पताल ले जाया जा रहा था। इसी दरमियान अस्पताल पहुंचने से पहले ही बच्ची की मौत हो गई। डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम के लिए शव को जिला अस्पताल रेफर कर दिया। छात्रा की मौत की खबर मिलते ही डीएमसी उमाशंकर तिवारी अस्पताल पहुंचे।
उल्लेखनीय है कि, जिले के अलग-अलग आवासीय आश्रम-पोटोकेबिन शालाओं में इलाज के अभाव में अब तक तीन आदिवासी बच्चों की मौत हो चुकी है। मिली जानकारी के अनुसार सोमवार को छिंदगढ़ ब्लॉक के बालाटिकरा में संचालित कन्या आवासीय पोटाकेबिन विद्यालय की दूसरी कक्षा में पढ़ रही 8 साल की रौशनी नाग की अचानक मौत हो गई। पोटाकेबिन की अनुदेशिका रामबती सागर ने बताया कि सुबह करीब 5.30 बजे प्रार्थना के बाद छात्रा अपने बेड पर जा कर लेट गई। छात्रा को अचानक सांस लेने में दिक्कत होने लगी। स्कूल स्टाफ तत्काल छात्रा को लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराने के लिए निकला। इसी बीच अस्पताल पहुंचने से पहले ही बच्ची ने दम तोड़ दिया।
छात्रा की मां रामबती ने बताया कि, सुबह 6 बजे पोटाकेबिन के स्टाफ ने बेटी की तबीयत खराब होने की सूचना फोन पर दी। खबर सुनते ही वह छिंदगढ़ अस्पताल पहुंची। यहां पहुंचने के बाद उसे बेटी की मौत की खबर मिली। मां रामबती के अनुसार बेटी को किसी तरह की कोई बीमारी नहीं थी। दिवाली की छुट्टियों में घर आई थी। उसके बाद एक बार बेटी से मिलने पोटाकेबिन गई थी। उस वक्त उसकी बेटी तंदुरुस्त थी। अचानक मौत की खबर ने उसे झकझोर कर दिया है। पोटाकेबिन प्रबंधन पर सवाल करते हुए रामबती ने कहा कि जिम्मेदार कुछ बोल भी नहीं रहे हैं। कैसे और कब से मेरी बेटी बीमार थी। उसका इलाज क्यों नहीं कराया गया। बिना किसी बीमारी के मौत कैसे हो सकती है।