रायपुर। वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन में राजनेताओं की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। हालांकि, अधिकतर राजनेताओं के हृदय में प्रकृति और वन्यजीवों के प्रति प्रेम होता है, लेकिन अपने संवैधानिक कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाने में वे अक्सर असफल हो जाते हैं। इस असफलता के पीछे कई मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण छिपे हुए हैं, जो वन्यजीव प्रबंधन में बाधा बनते हैं।
अल्पकालिक दृष्टिकोण और चुनावी प्राथमिकताएं
राजनेता दीर्घकालिक वन्यजीव संरक्षण की बजाय अल्पकालिक और मतदाता केंद्रित मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं। चुनावी चक्र और आर्थिक विकास के पक्षपात के कारण मूक पृथ्वीवासियों (वन्यजीवों) के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जाता।
जागरूकता और विशेषज्ञता की कमी
अधिकांश राजनेताओं को वन्यजीवों के व्यवहार, पारिस्थितिकी तंत्र, और जैव विविधता के महत्व की गहरी समझ नहीं होती। उनके निर्णय अक्सर अधीनस्थ तंत्र पर निर्भर होते हैं, जिससे वन्यजीव प्रबंधन में भ्रम और प्राथमिकता की कमी उत्पन्न होती है।
अपर्याप्त धनराशि और दुरुपयोग
वन्यजीव संरक्षण के लिए आवंटित धनराशि सीमित होती है और कई बार इसका दुरुपयोग होता है। इससे संरक्षण के प्रयास कमजोर पड़ जाते हैं।
समन्वय और दीर्घकालिक दृष्टि का अभाव
विभिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी और दीर्घकालिक नीतियों के अभाव में वन्यजीव प्रबंधन में ठोस परिणाम नहीं मिल पाते।
मानव-वन्यजीव संघर्ष
लोकलुभावनता के कारण राजनेता कई बार स्थानीय लोगों को शांत करने के लिए वन्यजीवों के खिलाफ कठोर कदम उठाते हैं। इससे वन्यजीव संरक्षण में बाधा आती है।
समाधान के उपाय
- जागरूकता बढ़ाना: राजनेताओं को वन्यजीव प्रबंधन और उनके महत्व को समझने के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए।
- मजबूत नीतियां: सह-अस्तित्व के लिए ठोस और दीर्घकालिक नीतियां बनाई जानी चाहिए।
- पारदर्शी धनराशि उपयोग: संरक्षण के लिए आवंटित धनराशि का सही उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- सहयोगी प्रयास: सरकारी विभागों, विशेषज्ञों और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर संरक्षण के लिए साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिए।