दंतेश्वरी मंदिर पहुंची मावली माता की डोली, आतिशबाजी के साथ बस्तर में धूमधाम से मनाई गई मिलन की रस्म
बस्तर दशहरा का पर्व अपनी अनूठी परंपराओं और भव्यता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। नवरात्रि के नवमी के दिन इस पर्व की एक महत्वपूर्ण रस्म, मावली परघाव, बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। यह रस्म मावली माता और दंतेश्वरी देवी के मिलन की है, जिसे जगदलपुर स्थित दंतेश्वरी मंदिर के कुटरूबाढ़ा परिसर में सम्पन्न किया जाता है।
बस्तर दशहरा का पर्व अपनी अनूठी परंपराओं और भव्यता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। नवरात्रि के नवमी के दिन इस पर्व की एक महत्वपूर्ण रस्म, मावली परघाव, बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। यह रस्म मावली माता और दंतेश्वरी देवी के मिलन की है, जिसे जगदलपुर स्थित दंतेश्वरी मंदिर के कुटरूबाढ़ा परिसर में सम्पन्न किया जाता है।
जनसैलाब उमड़ा उत्सव देखने
हर साल की तरह इस वर्ष भी बस्तर दशहरा के इस अद्भुत आयोजन में लोगों की भारी भीड़ उमड़ी। परंपरा के अनुसार, दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र और डोली को जगदलपुर स्थित दंतेश्वरी मंदिर लाया गया, जहाँ बस्तर के राज परिवार और बस्तरवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। आतिशबाजी, फूलों की बौछार, और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ यह रस्म पूरी की गई। इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए हर साल हजारों की संख्या में लोग जगदलपुर पहुंचते हैं, और इस बार भी भीड़ में जोश और उत्साह की कोई कमी नहीं थी।
600 साल पुरानी परंपरा
यह महत्वपूर्ण रस्म बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और इसे पिछले 600 वर्षों से मनाया जा रहा है। महाराजा रुद्र प्रताप सिंह के समय से ही यह परंपरा चली आ रही है, और अब इसे बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव आगे बढ़ा रहे हैं। हर वर्ष मावली माता की डोली का स्वागत भारी आतिशबाजी और भव्यता के साथ किया जाता है, और इस साल भी दंतेवाड़ा से देर रात पहुंची माता की डोली को फूलों और दीपों से सजाया गया।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
इस आयोजन को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने में स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन का विशेष सहयोग रहता है। बस्तर दशहरा के इस महत्वपूर्ण आयोजन के मद्देनजर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं। इस बार भी लगभग 2,000 पुलिस बलों की तैनाती की गई थी ताकि सभी कार्यक्रम बिना किसी बाधा के संपन्न हो सकें।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
बस्तर का यह दशहरा पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। मावली माता और दंतेश्वरी देवी के मिलन की इस रस्म के जरिए बस्तर के लोग अपनी परंपराओं से जुड़े रहते हैं और अपनी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करते हैं। इस आयोजन के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि किस तरह बस्तर के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को न केवल संजोए हुए हैं, बल्कि उसे बड़े गर्व के साथ दुनिया के सामने प्रस्तुत भी करते हैं।
इस प्रकार, बस्तर दशहरा पर्व और मावली परघाव की यह रस्म बस्तर की संस्कृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण है।