नक्सलियों के समर्थन में उतरे कई संगठन : बोले- अंतरराष्ट्रीय बदनामी से बचना है तो सरकार युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकारे

बीजापुर। सबसे बड़े एंटी नक्सल ऑपरेशन के बीच नक्सलियों के समर्थक अनेक संगठन सरकार पर शांतिवार्ता के लिए प्रेशर बनाने में जुट गए हैं। इन्हीं में से नागरिक समाज संगठनों और व्यक्तियों के एक व्यापक गठबंधन ने सरकार को पत्र लिखा है।जिसमें उन्होंने युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार करने और अभियान रोकने की बात कही है।

दरअसल, नागरिक समाज संगठनों और व्यक्तियों के एक व्यापक गठबंधन ने सरकार और नक्सलियों के बीच तत्काल शांति वार्ता के लिए एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की।जिसमें कहा- नक्सलियों ने कई पत्रों और प्रेस साक्षात्कारों के माध्यम से एकतरफा युद्धविराम की अपनी इच्छा की घोषणा की है। इसलिए भारत सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह भी युद्धविराम की घोषणा करे और शांति वार्ता शुरू करे।

इन संगठनों ने की अपील 

बैठक को कई प्रमुख हस्तियों ने संबोधित किया, जिनमें जी. हरगोपाल (शांति संवाद समिति, तेलंगाना), बेला भाटिया (छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन), शशिकांत सेंथिल (सांसद, कांग्रेस), राजा राम सिंह (सांसद, भाकपा-माले लिबरेशन), डी. रविकुमार (सांसद, लिबरेशन पैंथर्स पार्टी/वीसीके), डी. राजा (महासचिव, भाकपा), विजू कृष्णन (पोलित ब्यूरो सदस्य, भाकपा-मार्क्सवाड़ी), सोनी सोरी (आदिवासी कार्यकर्ता, दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़), मनीष कुंजाम (पूर्व विधायक एवं नेता, बस्तरिया राज मोर्चा), मीना कंदासामी (लेखिका) और बादल (कॉर्पोरेटीकरण और सैन्यीकरण के खिलाफ मंच) शामिल थे।

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होगी बदनामी 

सभी वक्ताओं ने बताया कि, तेलंगाना छत्तीसगढ़ सीमा पर करेंगुट्टा/दुर्गामेट्टा पहाड़ियों के आसपास बड़े पैमाने पर उग्रवाद विरोधी अभियानों के कारण यह मामला और भी जरूरी हो गया है। जहां कथित तौर पर 10 हजार से 24 हजार सुरक्षाबल नक्सलियों के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभियान चला रहे हैं। साथ ही झारखंड के डीजीपी (DGP) का बयान जिसमें उन्होंने कहा कि, 15-20 दिनों में माओवादियों का सफाया कर दिया जाएगा। बातचीत के बजाय बल प्रयोग का यह दृष्टिकोण सभी संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है और अपने ही नागरिकों का इस पैमाने पर नरसंहार भारत सरकार और संबंधित राज्य सरकारों की अपने देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी बदनामी होंगी।

300 से अधिक संगठनों ने युद्धविराम का किया समर्थन 

300 से अधिक संगठनों और व्यक्तियों ने तत्काल युद्धविराम की अपील का समर्थन किया है। जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भेजा गया। डॉ. बेला भाटिया ने बस्तर के आदिवासियों की शांति की तीव्र इच्छा की ओर इशारा करते हुए अपनी बात शुरू की। आदिवासियों ने पिछले बीस वर्षों में संघर्ष के कारण बहुत कष्ट झेले हैं। पिछले 16 महीनों में ही 400 लोग मारे गए हैं, एक शिशु मारा गया और बच्चों को बंदूक की गोली से चोटें आई हैं। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ हुई हैं और संवैधानिक रूप से लोकतांत्रिक अधिकारों को उठाने वाले युवा मंच मूलवासी बचाओ मंच (MBM) पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है।

बस्तर को सरकार ने छावनी में बदल दिया है 

सोनी सोरी ने 40 गाँवों की एक सूची भी दिखाई, जिन्होंने शांति की माँग करते हुए पत्र लिखा था, और बस्तर में शांति की व्यापक इच्छा को दोहराया। उन्होंने बताया कि हाल ही में मारे गए कई शीर्ष माओवादी नेता, जैसे रेणुका और सुधाकर, मुठभेड़ों के बजाय निर्मम हत्या में मारे गए थे, जबकि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता था। मनीष कुंजम ने कहा कि, बस्तर को एक विशाल छावनी में बदल दिया गया है जहाँ हर कुछ किलोमीटर पर सुरक्षा शिविर हैं और जब तक निर्णायक शांति वार्ता नहीं होती, सरकार इन शिविरों को चालू रखेगी, जो लोगों के लिए बहुत हानिकारक है। उन्होंने कहा कि सभी आदिवासी और मूलवासी समूहों का एक मंच सर्व आदिवासी समाज भी शांति की दिशा में काम करना चाहता है।

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