सत्ता गंवाई लेकिन राज्यसभा में ताकत बरकरार, संसद में YSRCP और BJD क्या अब भी होंगे मोदी सरकार के पालनहार?

नईदिल्ली। बीते चुनाव की जब भी बात होती है, बरबस लोकसभा चुनाव परिणामों के जिक्र से चर्चा समाप्त हो जाती है. पर ध्यान रहे इस दौरान 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हुए. जिनमें सबसे अधिक चर्चा आंध्र प्रदेश और ओडिशा की रही. आंध्र प्रदेश में तो बस पांच बरस पहले ‘जननायक’ बनकर उभरे वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी (YSRCP) का लोकसभा और विधानसभा दोनों में सफाया हो गया. वहीं, करीब दो दशक से ओडिशा का पर्याय बन चुके नवीन पटनायक और उनकी बीजू जनता दल को प्रदेश में करारी शिकस्त मिली. लेकिन इससे इन दोनों राजनीतिक दलों की ताकत संसद में पूरी तरह समाप्त नहीं हुई. जरूर लोकसभा में दोनों पार्टियों के सांसदों की संख्या बड़े पैमाने पर घटी है लेकिन राज्यसभा में इन दोनों क्षेत्रीय क्षत्रपों की ताकत जस की तस है.

राज्यसभा में वाईएसआरसीपी के फिलहाल 11 जबकि बीजू जनता दल के 9 सांसद हैं. उधर भारतीय जनता पार्टी के पास संसद के इस उच्च सदन में दस साल के शासन के बाद भी अपने दम पर कौन कहे, सहयोगियों के सांसदों की संख्या को भी जोड़ दिया जाए तो बहुमत नहीं है. राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 245 है. इस तरह यहां बहुमत के लिए या यूं कहें कि किसी भी बिल को पारित कराने के लिए 123 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होगी. फिलहाल एनडीए के सभी सहयोगी दलों के राज्यसभा सांसदों की संख्या 117 ही है जो बहुमत से 6 कम है. ऐसे में, बगैर वाईएसआरसीपी या बीजू जनता दल के लिए भाजपा का कोई बिल उच्च सदन में आसानी से पारित करा पाना आसान नहीं होगा. भाजपा जरुर आने वाले दिनों में खाली हुई कम से कम 6 सीटों को जीतने की स्थिति में है लेकिन तब भी वाईएसआरसीपी और बीजू जनता दल का समर्थन उसे मजबूत बनाएगा.

BJD, YSRCP का समर्थन नहीं होगा आसान?
बीजू जनता दल ने तो राज्यसभा को लेकर अपनी स्थिति अब तक साफ नहीं की है लेकिन वाईएसआरसीपी ने कहा है कि वह मुद्दों के आधार पर सदन में अपना रुख तय करेंगे. वाईएसआरसीपी का समर्थन लेना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं होगा क्योंकि वह चुनाव के दौरान आंध्र प्रदेश में हुई हिंसा के आंकड़े जुटाने का केंद्र सरकार पर दबाव बना रही है. ऐसा कहते हुए वाईएसआरसीपी एन चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई वाली तेलुगू देशम पार्टी पर संगीन आरोप लगा रही है. चूंकि टीडीपी के समर्थन से ही भारतीय जनता पार्टी केन्द्र में सरकार चला रही है. मोदी सरकार के लिए वाईएसआरसीपी की बातों को मानना आसान नहीं होगा. बीजू जनता दल ने अभी तक राज्यसभा में अपनी रणनीति को लेकर कुछ कहा नहीं है. लेकिन ओडिशा की राजनीति में भाजपा की सरकार का विरोध करना और केंद्र में पहले की भांति मोदी सरकार को बेशर्त समर्थन देना बीजद के लिए मुश्किल है.ऐसे में, एक देश – एक चुनाव, समान नागरिक संहिता जैसे विवादास्पद विषयों पर दोनों दलों का रुख सदन में बहुत कुछ तय करेगा.

BJD, YSRCP कभी साथ, कभी खिलाफ
मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में दोनों दलों के राज्यसभा सांसद मोदी सरकार के लिए पालनहार साबित हुए थे. जब-जब भाजपा के लिए किसी विवादित बिल को पारित कराना चुनौतीपूर्ण लग रहा था, इन दोनों पार्टियों ने खुलकर मोदी सरकार का साथ दिया. चाहें अनुच्छेद 370 को बेअसर करना हो या फिर सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) को संसद से पारित कराना, दोनों ही मौकों पर वाईएसआरसीपी और बीजू जनता दल का सरकार का समर्थन मिला था. तीन तलाक के मुद्दे पर बीजू जनता दल ने तो मोदी सरकार के रुख का समर्थन किया था लेकिन वाईएसआरसीपी ने विरोध का रास्ता चुना था. विवादित तीन कृषि कानूनों पर, जिसे बाद में सरकार ने वापस ले लिया, संसद से पारित कराने वक्त वाईएसआरसीपी का समर्थन मिला था लेकिन बीजू जनता दल ने विरोध किया था.

राज्यसभा में विपक्ष की क्या है स्थिति?
राज्यसभा में इंडिया ब्लॉक के मौजूदा सांसदों की संख्या 80 है जबकि कुल 33 सांसद ऐसे हैं जो न तो एनडीए के समर्थन में हैं और ना ही इंडिया ब्लॉक के. इंडिया ब्लॉक के 80 सांसदों में 26 सांसद कांग्रेस पार्टी के हैं जबकि तृणमूल कांग्रेस के एमपी की संख्या की 13 है. दिल्ली और पंजाब में सत्ताशीन आम आदमी पार्टी और तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) के राज्यसभा सांसदों की संख्या 10-10 है. इसी तरह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के सांसद 5-5 हैं. ये सभी विपक्ष में हैं. पर तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के 5 सांसद हैं. और बीआरएस का न तो भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए को समर्थन है और न ही कांग्रेस की अगुवाई वाली इंडिया ब्लॉक को. बीआरएस की तरह ही वाईएसआरसीपी और बीजू जनता दल की रणनीति साफ नहीं है. ये दल क्या रुख किसी मुद्दे पर अपनाते हैं, ये देखने वाली बात होगी.

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