जावेद जाफरी ने इंटीमेट सीन की वजह से ठुकराईं कई फिल्में, बोले- मेरे अंदर सेंसर लगा है

मुंबई : जावेद जाफरी ने अपनी एक्टिंग और जबरदस्त कॉमेडी से हर बार ‘धमाल’ मचाया है। अश्लील कॉमेडी के खिलाफ एक्टर को लगता है कि पैन इंडिया फिल्मों की वजह से प्रतियोगिता बढ़ रही है। उनका कहना है कि दर्शकों को अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन देना चाहिए। वरना, अच्छी फिल्में बनना बंद हो जाएंगी। स्क्रिप्ट चुनने के लिए अपने आंतरिक सेंसर का इस्तेमाल करने वाले जावेद जाफरी ने सेक्शुअल सीन्स की वजह से कई ऑफर ठुकरा दिए। हिंदुस्तान को यूनीक मुल्क मानने वाले जावेद जाफरी कहते हैं कि सोशल मीडिया पर सिर्फ पांच प्रतिशत लोग ही देखने लायक कंटेंट बना रहे हैं।

दर्शक अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन दें

फिल्म बनाने वाले से लेकर देखने वाले तक सबकी जिम्मेदारी होती है। किसी ने अच्छी फिल्म बनाई और दर्शक थिएटर में देखने ही नहीं गए तो वैसी फिल्में बनना बंद हो जाएंगी। कोशिश होनी चाहिए कि नॉर्मल लव स्टोरी से हटकर कुछ बनाया जाए। बाकी दर्शकों की भी जिम्मेदारी है कि अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन दें क्योंकि इंडस्ट्री भी एक बिजनेस है और जो यहां पैसा लगाएगा, वो कुछ मुनाफे की भी उम्मीद करेगा। अब ओटीटी की वजह से प्रतियोगिता बढ़ गई है क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से आप कहीं से भी बैठकर वर्ल्ड सिनेमा का आनंद ले सकते हैं। 2018 में आई ‘बधाई हो’ फिल्म को अगर आप आज सिनेमाघरों में रिलीज करोगे तो शायद उतनी ना चलें क्योंकि कोविड-19 के बाद काफी चीजें बदल गई हैं। अब परिवारवाला आदमी एक साथ ढाई से तीन हजार रुपये खर्च करने से पहले सोचता है।

मेरे अंदर खुद एक सेंसर है

कॉमेडी, थ्रिलर, मिस्ट्री, फैमिली ड्रामा अलग-अलग किस्म की कहानियां होती हैं। उसमें कुछ बात होनी चाहिए। मैं ये भी देखता हूं कि डायरेक्टर कौन है, कहानी लिखी कैसे गई है और मैं क्या किरदार निभा रहा हूं। पहले मैं कहानी देखता हूं फिर अपने किरदार पर आता हूं। मैं कहानी के साथ अपने किरदार का टच तलाशता हूं। तब जाकर बतौर कलाकार उसमें क्या कर सकता हूं, इस दिशा में काम करता हूं। मेरे अंदर खुद एक सेंसर है, जो बताता है कि मुझे क्या करना है और किस तरह की चीजें मैं नहीं कर सकता। कुछ चीजें आईं, जिनमें न्यूडिटी (सेक्शुअल सीन्स) थी। मुझे लगा कि मैं ये नहीं कर सकता क्योंकि मैं उसमें सहज नहीं था। चार-पांच बार मेरे साथ ऐसा हुआ।

पांच प्रतिशत लोग अच्छा कंटेंट बना रहे

सोशल मीडिया पर बहुत लोग परफॉर्म कर रहे लेकिन उसमें से पांच प्रतिशत ही लायक हैं। बाकी कंटेंट के मामले में औसत दर्जे के हैं या फिर बकवास हैं। उस पांच प्रतिशत में अगर कोई आगे बढ़ रहा है तो खुशी की बात है। पहले एक एक्टर को मुंबई जाकर जूते घिसने पड़ते थे कि कोई फोटो देख ले या ऑडिशन कर ले। इस नए जमाने में पहाड़ पर बैठा इंसान कोई वीडियो डालता है तो हॉलीवुड में बैठा इंसान भी उसे देख सकता है और उसके साथ काम कर सकता है। अब लोगों के साथ कनेक्ट होना आसान हो गया है। ये जरूरी नहीं कि हर आदमी ऐक्टिंग की ट्रेनिंग करे। कुछ चीजें नैचुरल होती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button