अपहरण व दुष्कर्म के कैदी को उच्च न्यायालय ने दी राहत, आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष के कारावास में बदला

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 13 वर्षीय नाबालिग के अपहरण और रेप के मामले में दोषी करार दिए गए आरोपी की सजा में आंशिक संशोधन किया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पीडि़ता की गवाही स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय हो, तो दोष सिद्ध करने के लिए अन्य साक्ष्यों की जरूरत नहीं होती। हालांकि, हाईकोर्ट ने आरोपी की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया।
अभियोजन के अनुसार 11 नवंबर 2021 को राजेलाल मेरावी (27 वर्ष), निवासी ग्राम सिंगबोरा, जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई ने घर के बाहर खेल रही एक 13 वर्षीय बच्ची का अपहरण कर लिया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने मुंह दुपट्टे से बांधकर उसे अपने घर ले गया और वहां बलात्कार किया। अगले दिन, बच्ची को डरा-सहमा देख परिजनों ने थाना सलेहवारा में शिकायत दर्ज कराई। विशेष अपर सत्र न्यायालय, खैरागढ़ ने 22 जून 2023 को आरोपी को दोषी करार देते धारा 342 (गलत तरीके से रोकने) को लेकर एक वर्ष कठोर कारावास, धारा 363 (अपहरण) के तहत 7 वर्ष कठोर कारावास तथा पाक्सो एक्ट 3/4 (बच्चों से रेप से संबंधित) अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील कर सजा में राहत की मांग की। उसका तर्क था कि ट्रायल कोर्ट ने केवल पीडि़ता की गवाही पर दोषसिद्धि दी, जबकि अन्य गवाहों के बयान विरोधाभासी थे। बचाव पक्ष ने यह भी दावा किया कि मेडिकल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हुई और पीडि़ता की उम्र साबित करने के लिए ऑसिफिकेशन टेस्ट नहीं कराया गया। दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से पैनल वकील नितांश जायसवाल ने दलील दी कि पीडि़ता की उम्र स्कूल रिकॉर्ड और प्रधानाध्यापक की गवाही से प्रमाणित हुई।
साथ ही, पीडि़ता, उसकी मां और पिता के बयान पूरी तरह सुसंगत और विश्वसनीय थे। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के स्टेट ऑफ पंजाब बनाम गुरमीत सिंह (1996) और गणेशन बनाम स्टेट (2020) मामलों का हवाला देते हुए कहा कि यदि पीडि़ता की गवाही निष्कलंक और भरोसेमंद हो, तो उसे अन्य साक्ष्यों से पुष्ट करने की आवश्यकता नहीं होती। अदालत ने अभियुक्त की उम्र व मामले की समग्र परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आजीवन कारावास को घटाकर 20 वर्ष का कठोर कारावास कर दिया।