भालू ने नोच ली थी नाक: डॉक्टरों ने माथे की त्वचा और कान की हड्डी से बना दी दूसरी

रायपुर। जंगल में भालू के हमले से बुरी तरह घायल हो चुके वृद्ध को डीके सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने शारीरिक के साथ मानसिक संबलता प्रदान की। भालू ने मरीज का चेहरा और नाक बुरी तरह नोच डाला था। उसे इलाज के लिए रायपुर लाया गया, जहां लंबी प्रक्रिया के बाद प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने उसके माथे की त्वचा और कान की हड्डी की मदद से उसकी नयी नाक बना दी

चिकित्सकों के मुताबिक, कांकेर जिले के चारामा में रहने वाला वृद्ध जंगल गया था, जहां भालू ने उस पर हमला कर दिया था। बताया जाता है, साथियों के चीखने-चिल्लाने पर भालू भाग गया और वृद्ध की जान तो बच गई, मगर उसके चेहरे पर गंभीर जख्म आए थे। भालू ने वृद्ध की नाक बुरी तरह काट खाई थी। वहां के प्राथमिक उपचार के बाद गांव वाले उसे लेकर राजधानी के निजी अस्पताल पहुंचे थे, जहां घाव को देखते हुए डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने से इनकार कर दिया था। जनप्रतिनिधियों की सलाह पर मरीज को डीकेएस सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल लाया गया।

आयुष्मान स्वास्थ्य योजना के तहत मरीज का इलाज हुआ निशुल्क
कास्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने जांच के बाद इलाज की सहमति दी और इलाज की लंबी प्रक्रिया के बाद उसके जख्मों को भर दिया। उपचार प्रक्रिया के तहत ऑपरेशन के दौरान मरीज की कान की हड्डी और माथे की त्वचा का उपयोग कर उसकी नाक वापस बना दी। मरीज का इलाज आयुष्मान स्वास्थ्य योजना के तहत पूरी तरह निशुल्क हुआ। निजी अस्पताल में इसके लिए तीन से चार लाख रुपये खर्च होना अनुमानित था। ऑपरेशन के लिए डाक्टरों ने माथे और कान की उप अस्थि के अलावा भालू के हमले से बने घाव के निशान की त्वचा का भी उपयोग किया था। काफी दिनों मरीज को डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया इस दौरान उसके मन में उठे निराशा के भाव को दूर करने के लिए काउंसिलिंग दी गई। उसके पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

समय पर इलाज से अंगों को बचाना संभव
अस्पताल अधीक्षक डॉ. शिप्रा शर्मा एवं उपअधीक्षक डॉ. हेमंत शर्मा ने बताया कि, किसी भी तरह के हादसे में समय पर इलाज शुरू होने से कटे अंगों को बचाया जा सकता है। हास्पिटल में कास्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जरी के माध्यम से ऐसे मरीजों का सफलता पूर्वक उपचार किया जा रहा है।

तीन महीने का इलाज और तीन सर्जरी
प्लास्टिक एंड कास्मेटिक सर्जन डॉ. कृष्णानंद ध्रुव ने बताया कि, मरीज को तीन महीने पहले अस्पताल लाया गया था। उपचार की लंबी प्रक्रिया के दौरान उसका तीन बार ऑपरेशन करना पड़ा था। नाक की बनावट और कार्य को बहाल करने के लिए यह एक तकनीकी रूप से जटिल प्रक्रिया थी। हमने चेहरे के अनुरूप एक नई नाक बनाई, जो सौंदर्य और कार्यक्षमता दोनों दृष्टियों से संतुलित हो। सर्जरी की लंबी प्रक्रिया में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रीति पांडे, एसआर डॉ. संगीता और एनीस्थिसिया टीम के डॉ. मेघना मिश्रा और डॉ. लोकेश नेटी ने साथ दिया।

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