CG : पूजन सामग्रियों के सम्मान की अनोखी मिसाल, मिट्टी के कलशों से बना हनुमान मंदिर

दुर्ग  : आपने कई प्राचीन मंदिर देखे होंगे. उस मंदिर से जुड़ी कहानियां भी सुनी होंगी. लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के दर्शन कराने वाले हैं. वो अपने आप में अनोखी है. ये मंदिर भले ही प्राचीन नहीं है.लेकिन ये मंदिर को जिस तरह से बनाया जा रहा है. उसे देखने के बाद ये लग रहा है कि आने वाली पीढ़ियां इस कलाकृति को देखकर जरूर आज के दिनों को याद करेंगी. जी हाँ हम बात कर रहे हे दुर्ग जिले में स्थित कलश मंदिर के बारे में जिसे मिट्टी के ज्योति कलश से निर्मित किया जा रहा हे। तो चलिए जानते हे की आखिर इसे बनाने के पीछे की कहानी क्या है.

भारत में बहुत से धार्मिक स्थान हैं, जो बेहद अनोखे हैं। अगर आप घूमने के शौकीन हैं, तो आपने दुनिया भर में कई प्राचीन मंदिर देखे होंगे, किन्तु इस बात की संभावना कम है कि आपने कहीं मिट्टी के ज्योति कलश से बना मंदिर देखा हो। अगर नहीं देखा है, तो आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताएंगे। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर धमधा क्षेत्र में मिट्टी के ज्योति कलश से निर्मित मंदिर है। मंदिर का पूरा निर्माण ज्योति कलश और दीपों से किया गया है। मंदिर के भीतर भगवान हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गई है।

ज्योतिकलश से बन रहा है मंदिर दुर्ग जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर धमधा से खैरागढ़ जाने वाले रास्ते पर मौजूद है .ये मंदिर आम मंदिरों से बिल्कुल अलग है. क्योंकि इस मंदिर के लिए ईंट या पत्थरों का नहीं बल्कि ज्योति कलशों का इस्तेमाल किया जा रहा है. मंदिर को छोटे-बड़े दियों से बनाया जा रहा है. इस निर्माणाधीन मंदिर के पास ही हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गई है.

आपके मन ये सवाल जरूर उठ रहा होगा की आखिर ये मंदिर क्यों बनाया जा रहा हे इसके पीछे का मकसद क्या हे तो आपको बता दे कि कलश के अपमान की वजह से यह निर्णय लिया गया हे मंदिर के पुजारी बताते हे कि इस मंदिर को बनाने के पीछे एक अहम मकसद है. दरअसल नवरात्रि और दीपावली के समय लोग 9 दिन मां दुर्गा की पूजा करने के साथ-साथ कलश में दीप जलाते हैं. 9 दिन बाद उन ज्योति कलश को तालाब या नदी में विसर्जित कर देते हैं.

उसके बाद कलश पर लोगों के पैर लगते हैं.जबकि पूजन सामग्रियों में खुद भगवान का वास होता है. इसलिए बेकार पड़े कलश और दीयों को इकट्ठा करके मंदिर निर्माण शुरु किया गया. इस मंदिर का निर्माण 14 साल पहले शुरू हुआ था. अब तक इस मंदिर में एक लाख से ज्यादा कलश और दीप लग चुके हैं. यह मंदिर लगभग 50 फीट तक बन चुका है. लोग अपनी श्रद्धा से मंदिर निर्माण के लिए लगातार दान कर रहे हैं. लोगों की आस्था इस मंदिर के निर्माण और पूजा के प्रति लगातार बढ़ रही है. मंदिर निर्माण के लिए दंतेवाड़ा की मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ की मां बमलेश्वरी और रतनपुर की मां महामाया मंदिर से मिट्टी के कलश लाए जा चुके हैं.

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