महिलाएं भी कर सकती हैं श्राद्ध कर्म और पिंडदान? गरुड़ पुराण में कही गई है ये बात

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है, यह 14 अक्टूबर तक रहेगा। पितृ पक्ष में सही तिथि पर पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर परिवार को अपना आशीर्वाद देते हैं। माना जाता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज पितृ लोक से धरती पर आते हैं और जब परिवार श्राद्ध कर्म करते हैं तो प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और फिर लौट जाते हैं। अधिकांश घरों में केवल पुरुष ही श्राद्ध कर्म करते हैं, लेकिन क्या महिलाएं भी श्राद्ध कर्म कर सकती हैं या नहीं? क्या स्त्रियों द्वारा किया गया श्राद्ध पितरों को स्वीकार होता है? गरुड़ पुराण में इस बारे में विस्तार से बताया गया है।

महिलाएं भी कर सकती हैं श्राद्ध कर्म?

गरुण पुराण के अनुसार, श्राद्ध कर्म केवल घर के पुरुष ही कर सकते हैं। महिलाओं के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं बताया गया है। पंडित आशीष शर्मा के मुताबिक, महिलाएं पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म कार्य नहीं कर सकती हैं। यदि घर में कोई पुरुष न हो तो कुल का कोई अन्य पुरुष या कोई ब्राह्मण श्राद्ध और तर्पण कर सकता है। घर की महिलाएं ब्राह्मणों को भोजन कराने का कार्य कर सकती हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार

कुछ विशेष परिस्थितियों में कन्याएं भी श्राद्ध कर सकती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, विशेष परिस्थिति आने पर कन्याएं श्राद्ध कर सकती हैं। माता सीता ने भी अपने पितरों का श्राद्ध किया था। एक पौराणिक कथा में यह बताया गया है कि जब भगवान राम, सीता जी के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गया धाम पहुंचे थे, उस समय भगवान राम श्राद्ध की सामग्री लेने के लिए चले गए। उसी दौरान राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग की, जिसके बाद माता सीता ने फाल्गु नदी, गायस केतकी के फूल और वट वृक्ष को साक्षी मानकर श्राद्ध किया था।

इन नियमों का करें पालन

पितरों का श्राद्ध सही तिथि पर ही करना चाहिए। अगर किसी कारण से आपको तिथि याद नहीं है तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन भूले हुए पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।

श्राद्ध में सफेद रंग का महत्व होता है। नहाने के बाद श्राद्ध पक्ष में सफेद कपड़े पहने।

श्राद्ध सामग्री में कुश रोली, सिन्दूर, चावल, जनेऊ, काले तिल और गंगाजल जैसी जरूर रखें।

श्राद्ध कर्म करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार दक्षिणा भी दें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button