Bilaspur High Court News: हाई कोर्ट ने एट्रोसिटी एक्ट को लेकर सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

Bilaspur High Court News: बिलासपुर। हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति- जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध तभी कायम रह सकता है, जब यह सिद्ध हो कि आरोपी ने यह जानते हुए अपराध किया कि पीड़ित एससी या एसटी समुदाय से है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने एक आपराधिक अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के प्रमोद उर्फ नान्हू तिवारी ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। उन्होंने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम सहित कई अपराधों के तहत विशेष न्यायाधीश द्वारा दी गई सजा को चुनौती दी थी।

Bilaspur High Court News: मामला 7 फरवरी, 2018 का है, जब छह साल की आदिवासी बच्ची को उसके घर से अगवा कर लिया गया था। बच्ची के पिता के अनुसार, आरोपी ने बच्ची को बिस्किट का लालच दिया और उसे पास के जंगल की पहाड़ी (डोंगरी) में ले गया, जहां उसने उसके साथ दुष्कर्म किया। पिता ने आरोपी को ऐसा करते हुए देखा और तुरंत बच्ची को बचा लिया।

निचली अदालत ने सुनाई थी सजा

Bilaspur High Court News: घटना के बाद मरवाही पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई। जांच के बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 366 और 376(2), पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोप तय किए गए। विशेष अदालत ने अपीलकर्ता को दोषी करार देते हुए पॉक्सो और अत्याचार अधिनियम के तहत आजीवन कारावास और अपहरण के लिए 10 साल की सजा सुनाई।

हाई कोर्ट ने सजा में किया संशोधन

Bilaspur High Court News: डिवीजन बेंच ने पॉक्सो के तहत सजा को इस आधार पर आजीवन कारावास से 14 साल के कठोर कारावास में बदल दिया कि अपराध 2019 के संशोधन से पहले हुआ था। जिसमें न्यूनतम 20 साल की सजा का प्रावधान था। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी को पता था कि अपराध के समय पीड़िता एससी-एसटी समुदाय से थी, जो अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए अनिवार्य आवश्यकता है।

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