‘सैलरी पाने वालों से कम नहीं हाउसवाइफ का काम’, सुप्रीम कोर्ट ने गृहिणियों के योगदान को कम आंकने पर लगाई लताड़

नई दिल्ली। ‘घर में ही तो रहती हो…क्या ही काम होता होगा’ यह वाक्य हर गृहिणी को सुनना पड़ता है। चाहे वह सूरज निकलने से पहले उठती हो और रात को चांद के ढलने तक काम करती हो फिर भी यह वाक्य उनका पीछा नहीं छोड़ती है। घर में रहने वाली महिलायें न जाने कितने काम दिनभर में करती है बच्चें संभालने से लेकर वो सब देखतीं हैं जिससे उनके घर में रहने वाले मर्दों की जिंदगी आसान बनी रहे या उनके रूटीन में खलल न पड़े। लेकिन महीने के आखिर में वो घर में सैलरी नहीं ला पाती और बस इसी एक कारण से उनका सब किया हुआ सबकी नजरों में यहां तक आज के समाज की नजरों में भी यह सून्य माना जाता है।

इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए एक बड़ी टिप्पणी की है। उच्चतम न्यायालय ने हाउसवाइफ के काम को उनके साथी द्वारा सैलरी पाने के बराबर बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘परिवार की देखभाल करने वाली महिलाओं के योगदान का आंकलन पैसों से नहीं किया जा सकता है।’ कोर्ट में यह सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन ने गृहिणियों के मद्देनजर एह फैसला सुनाया है।

सड़क दुर्घटना में गृहिणी की मौत के मुआवजे पर कोर्ट ने की सुनवाई

यह ऐतिहासिक फैसला एक सड़क दुर्घटना में एक गृहिणी की असामयिक मृत्यु से संबंधित मामले में सुनवाई के दौरान सामने आया। इस घटना में शामिल वाहन के बीमा न होने के कारण, मुआवजे का दायित्व वाहन के मालिक पर आ गया। प्रारंभ में, परिवार को मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दो लाख से अधिक लाख की राशि दी गई थी। इस फैसले को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बरकरार रखा, जिसने एक गृहिणी के रूप में मृतक की भूमिका के आधार पर मुआवजे की गणना की, उसे न्यूनतम काल्पनिक आय दी गई।

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