प्रतिदिन नियमानुसार करें तर्पण पितृ पक्ष में खरीदारी अशुभ नहीं होती। पूर्वजों की पसंद का वस्तु खरीदने से घर में खुशहाली आती है। सालभर परिवार के सदस्यों का स्वास्थ अच्छा बना रहता है। पितृ पक्ष के दिनों में अपने पितरों को याद करते हुए उनके नाम का तर्पण और ज्योत लेकर उनकी पसंद का विभिन्न व्यंजनों का भोग भी लगाना चाहिए।
गोस्वामी तुलसीदास ने पितृ पक्ष को पितरों का महोत्सव कहा है। उन्हें स्मरण करने और श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध व तर्पण करने का काल है। ज्योतिषाचार्य पंडित वासुदेव शर्मा का कहना है कि पौराणिक ग्रंथों में भी बताया गया है कि तर्पण ऋषियों का नैत्यिक व शुभ कार्य था।
अतः पितृ पक्ष में खरीदारी को लेकर कोई निषेध शास्त्र-पुराणों में नहीं बताया गया है। पितृ पक्ष में यह भ्रांति है कि श्राद्ध के दिनों में कोई भी नया काम या खरीदारी नहीं की जाती। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। संभव हो तो यह प्रयास करना चाहिए कि पितृ पक्ष में पूर्वजों की पसंद का हर समान खरीदना चाहिए। दान भी करना चाहिए। इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से हुई है। इसका समापन 14 अक्टूबर को होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष का एक दिन कम हो गया है। इस बार 16 दिन की बजाए 15 दिन का ही पितृ पक्ष है। प्रतिपदा तिथि घट गई है।
श्राद्ध की हैं दो विधियां
पंडित देव कुमार पाठक का कहना है कि तर्पण इसमें जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन तर्पण किया जाता है। जल में गंगाजल, जौ, गाय का कच्चा दूध, काले तिल, चावल और लाल फूल मिलाए जाते हैं। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय पितरों को तर्पण करते हैं। हाथ में कुशा रखते हैं। ज्योत लेकर पूर्वजों की पसंद के व्यंजन बनाते हैं। जले कंडे की ज्योत लेकर भोग लगाते हैं। पांच जगह भोजन निकाला जाता है। एक गाय के लिए, दूसरा कौआ, तीसरा स्वान के लिए, चौथा चींटी और पांचवां ब्राह्मण के लिए।