छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, बना न्याय दृष्टांत

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 258 (4) के तहत नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने भू राजस्व संहिता में किए गए संशोधन व बनाए गए नियमों की स्वीकृति व सहमति के लिए विधानसभा के पटल पर रखने की आवश्यकता बताई है। इसके लिए राज्य शासन को निर्देशित किया है। हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय दृष्टांत बन गया है।

रायपुर निवासी शंकर लाल वर्मा ने अपने अधिवक्ता के जरिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर भू राजस्व संहिता में किए गए संशोधन व बनाए गए नियमों को चुनौती देते हुए कहा है कि भू राजस्व संहिता में संशोधन के बाद इसे विधानसभा के पटल पर रखा जाना था।

राज्य सरकार ने ऐसा नहीं किया है। याचिका के अनुसार पूर्ववर्ती मध्य प्रदेश राज्य ने गैर-कृषि से डायवर्सन के लिए मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 59 के साथ धारा 172 के तहत मूल्यांकन में परिवर्तन और प्रीमियम लगाने के संबंध में नियम बनाए। छह जनवरी 1960 की अधिसूचना द्वारा गैर-शहरी और शहरी क्षेत्रों में एक कृषि उद्देश्य और कृषि उद्देश्य से गैर-कृषि उद्देश्य में परिवर्तन, जो चार फरवरी 2020 को जारी अधिसूचना तक प्रचलन में था।

इसे छत्तीसगढ़ राज्य ने संहिता की धारा 59 के साथ धारा 258(1) के तहत शक्ति और क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए छह जनवरी 1960 की अधिसूचना में संशोधन किया है। संहिता की धारा 258(1) राज्य सरकार को संहिता के प्रावधानों को प्रभावी करने के उद्देश्य से नियम बनाने का अधिकार देती है। धारा 258(2) में प्रविधान है कि राज्य सरकार धारा 59 के तहत अन्य उद्देश्यों के लिए भूमि के डायवर्सन और प्रीमियम लगाने पर भू-राजस्व के मूल्यांकन के विनियमन से संबंधित नियम बना सकती है। धारा 258(4) में प्रविधान है कि संहिता के तहत बनाए गए सभी नियम विधानसभा के पटल पर रखे जाएंगे और विधानसभा द्वारा किए जाने वाले संशोधनों के अधीन होंगे।

राज्य शासन ने रखा पक्ष

संहिता की धारा 258(4) में बनाए गए नियमों को राज्य विधानमंडल की निर्देशिका के समक्ष रखने की आवश्यकता है, क्योंकि इसे न रखने के परिणाम को इसमें प्रदान नहीं किया गया है। संहिता की धारा 258(4) का प्रविधान निर्देशिका प्रकृति का है और उक्त प्रविधान का पालन न करने पर लागू अधिसूचना अधिकारहीन नहीं होगी।

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