ऐसे व्यक्ति के पास कभी नहीं होती धन की कमी, जानें क्या कहते हैं महात्मा विदुर

संसार में दो लोगों की नीतियां सबसे ज्यादा प्रचलन में रही हैं। पहली आचार्य चाणक्य की नीति और दूसरी महात्मा विदुर की नीति। दोनों की नीतियां आज की पीढ़ी के लिए एक प्रकार से मैनेजमेंट का कार्य कर रही हैं। संस्कृत में ‘विदुर’ शब्द का अर्थ कुशल, बुद्धिमान और बुद्धिमान होता है। आचार्य चाणक्य की तरह महात्मा विदुर कुशाग्र बुद्धि और दूरदर्शी होने के साथ ही स्वभाव से अत्यंत शांत और सरल थे। यही कारण था कि वे भगवान कृष्ण को भी प्रिय थे। महात्मा विदुर ने सत्य के साथ-साथ व्यवहार, धन और कर्म को भी विदुर नीति में सम्मिलित किया है। आइये जानते हैं कैसे व्यक्ति के पास नहीं होती है कभी धन की कमी।

अनिर्वेदः श्रियो मूलं लाभस्य च शुभस्य च ।

महान् भवत्यनिर्विण्णः सुखं चानन्त्यमश्नुते ।।

अर्थ – विदुर के इस श्लोक के अनुसार ऐसा व्यक्ति जो अपने काम को पूरी लग्न और ईमानदारी से करता है उसे हमेशा सुख प्राप्त होता है। जीवन सदा धन-संपत्ति बनी रहती । इतना ही नहीं उसे यश, मान-सम्मान भी प्राप्त होता है। महात्मा विदुर के अनुसार व्यक्ति को अपने कार्य पर ध्यान देना चाहिए जिससे वह अपने लक्ष्य तक बिना किसी रुकावट के आगे बढ़े।

सुखार्थिनः कुतो विद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।

सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ।।

अर्थ – आचार्य विदुर कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति केवल सुख की कामना करता है उसे विद्या प्राप्त होने में मुश्किल होती है। जो विद्या की प्राप्ति चाहता है उसे सुख की प्राप्ति नहीं होती है। यदि आप सुख की इच्छा रखते हैं तो आपको विद्या अर्जित करने का विचार तजना होगा और यदि आप विद्या चाहते हैं तो जीवन में सुख का त्याग करना होगा। विद्या अर्जित करने में परिश्रम और त्याग की जरूरत होती है। अभी किए त्याग से ही बाद में ज्ञानी व्यक्ति धन और सम्मान से पूर्ण होता है।

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