क्या है विष कन्या योग, जानिए कुंडली में कैसे होता है निर्मित
विष कन्या आपने किसी टीवी सीरियल में इस प्रकार का नाम सुना होगा। लेकिन असल जिंदगी में यह प्रकार का योग है कि जातक की कुंडली में बनता है। वैदिक ज्योतिष में इस योग को बहुत अशुभ माना गया है। किसी कन्या की कुंडली में खास ग्रह नक्षत्रों की स्थिति से यह योग निर्मित होता है। ऐसा कहा जाता है कि जिसकी कुंडली में यह योग निर्मित होता है उसे जीवन में कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। नाम के अनुसार ही यह योग जहरीला होता है जो जीवन में जब भी सुख आता है उसे अपने विष से खराब कर देता है। आइए जानते हैं क्या है विषकन्या योग कैसा होता है निर्मित।
इन स्थितियों में बनता है विषकन्या योग
ज्योतिष के अनुसार ऐसे जातक जिनका अश्लेषा या शतभिषा नक्षत्र में जन्म हो और उस दिन रविवार के साथ द्वितीया तिथि भी हो तो विषकन्या योग बनता है। वहीं, कृतिका, विशाख़ा या शतभिषा शतभिषा नक्षत्र हो और उस दिन रविवार के साथ द्वादशी तिथि भी मौजूद हो तब यह योग बनता है। अश्लेषा, विशाखा या शतभिषा नक्षत्र हो और साथ में मंगलवार और सप्तमी तिथि भी हो तब विषकन्या योग निर्मित होता है।
अश्लेषा नक्षत्र शनिवार के दिन कन्या का जन्म हो और साथ में द्वितीया तिथि भी हो तो यह अशुभ योग कुंडली में होता है। शतभिषा नक्षत्र में मंगलवार के दिन द्वादशी तिथि में किसी कन्या के जन्म होने पर उस कन्या की कुंडली में यह अशुभ विषकन्या योग बनता है। शनिवार के दिन कृतिका नक्षत्र हो साथ में सप्तमी या द्वादशी तिथि हो तब विषकन्या योग प्रभावी होता है।
कुंडली में शनि लग्न में, सूर्य पंचम भाव में और मंगल नवम भाव में होने पर भी विषकन्या योग का निर्माण होता है। कुंडली के लग्न में कोई पाप ग्रह बैठा है और अन्य शुभ ग्रह जैसे चंद्रमा, शुक्र, गुरु, बुध कुंडली छठे, आठवें या बारहवें घर में हों तब विषकन्या योग बनता है। इसके अतिरिक्त कई अन्य परिस्थितियों में भी विष कन्या योग का निर्माण होता है।
विषकन्या योग से बचाव के उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस भी स्त्री की कुंडली में विषकन्या योग का निर्माण होता है उसे वटसावित्री व्रत जरूर करना चाहिए। विषकन्या योग से पीड़ित कन्या के विवाह से पूर्व कुंभ, श्रीविष्णु, पीपल अथवा शमी या बेर के वृक्ष के साथ उसका विवाह कराना चाहिए। इससे प्रतिकूल प्रभाव दूर होता है। विषकन्या योग से निजात पाने के लिए सर्व कल्याणकारी “विष्णुसहस्त्रनाम” का पाठ आजीवन करना चाहिए। गुरु बृहस्पति की आराधना से भी विषकन्या योग के अशुभ फलों में कमी आती है।