इस वजह से अग्नि को साक्षी मानकर लिए जाते हैं फेरे, जानिए मंगलसूत्र और सिंदूर का महत्व

विवाह दो लोगों के बीच जीवन भर का बंधन। विवाह दो लोगों को एक करने की परंपरा है। वहीं, दूसरे शब्दों में विवाह को समझा जाए तो दो लोगों के बीच के रिश्ते को सामाजिक और धार्मिक मान्यता देना है। सनातन धर्म में कई रीति-रिवाजों को पूरा करने के बाद विवाह सम्पन्न होता है। इन्हीं में से एक रीति अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेने की है। धर्म ग्रंथों में अग्नि को सूर्य देव का प्रतिनिधि माना गया है।
सूर्य जगत की आत्मा तथा विष्णु का रूप है। अग्नि के समक्ष फेरे लेने का अर्थ है परमपिता के समक्ष फेरे लेना होता है। अग्नि ही वह माध्यम है, जिसके द्वारा यज्ञ आहुतियां प्रदान करके देवताओं को पुष्ट किया जाता है। इस प्रकार अग्नि के रूप में समस्त देवताओं को साक्षी मानकर पवित्र बंधन में बंधने का विधान धर्म शास्त्रों में किया गया है। यही वजह है कि अग्नि के फेरे लिए बिना शादी पूर्ण नहीं मानी जाती है।
क्या है इसका विधान
वैदिक नियमानुसार, विवाह के समय अग्नि के साथ फेरे लिए जाते हैं। पहले तीन फेरों में वधु आगे चलती है जबकि चौथे फेरे में वर आगे होता है। ये चार फेरे चार पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं। इस प्रकार तीन फेरों द्वारा तीन पुरुषार्थों में वधू (पत्नी) की प्रधानता है, जबकि चौथे फेरे द्वारा मोक्ष मार्ग पर चलते समय पत्नी को वर का अनुसरण करना पड़ता है।
मंगलसूत्र
विवाह के समय वधू के गले में वर द्वारा मंगलसूत्र पहनाया जाता है। इस रस्म के बिना विवाह को अधूरा माना जाता है। मंगलसूत्र में काले रंग के मोती की लड़ियां, मोर एवं लॉकेट की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है। पौराणिक मान्यता के अनुसार लॉकेट अमंगल की संभावनाओं से स्त्री के सुहाग की रक्षा करता है। जबकि मोर पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। काले रंग के मोती बुरी नजर से बचाते हैं तथा शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकते हैं। इन्हीं वजह से इसे धारण किया जाता है।
सिंदूर
सनातन धर्म में विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग में सिंदूर भरने का संस्कार का रिवाज है। इसे ‘सुमंगली’ क्रिया कहा जाता है। विवाह वाले दिन से वधू नियमित यह कार्य करती है। विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घ आयु की कामना करते हुए आजीवन मांग में सिंदूर भरना सुहागन होने का प्रतीक है। सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होने के कारण चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती। बुरे दोष के निवारण के लिए भी शास्त्र स्त्री को मांग में सिंदूर भरने का परामर्श देते हैं।