MGNREGA : मनरेगा कर्मियों का हक की लड़ाई: 28 मार्च को रायपुर में होगा प्रदेशव्यापी प्रदर्शन

रायपुर। छत्तीसगढ़ में ग्रामीण विकास की सफलता में अहम भूमिका निभाने वाले मनरेगा कर्मचारी ( MGNREGA ) अब अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। 19 वर्षों से राज्य की प्रगति में योगदान देने के बावजूद न तो उनकी सेवा सुरक्षा सुनिश्चित हो पाई है और न ही उन्हें स्थायी नौकरी का दर्जा मिला है।
अब उम्र के पांचवें दशक में पहुंच चुके हजारों मनरेगा कर्मी अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसी सिलसिले में 28 मार्च को प्रदेशभर के 12,000 कर्मचारी रायपुर में एकजुट होकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री एवं पंचायत मंत्री विजय शर्मा के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपेंगे।
पांच महीने से नहीं मिला वेतन, आर्थिक तंगी से जूझ रहे कर्मचारी
मनरेगा कर्मचारियों को न केवल स्थायी नौकरी से वंचित रखा गया है, बल्कि पिछले पांच महीनों से वेतन भी नहीं मिला है। इसके चलते कर्मचारियों को बच्चों की स्कूल फीस, बुजुर्ग माता-पिता की दवाइयों, घर के किराए और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
सरकार ने कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान के लिए एक कमेटी गठित की थी, जिसे 15 दिन में रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। उल्टा, मनरेगा कर्मियों पर पीएम आवास, स्वच्छ भारत मिशन (SBM) और अन्य विभागीय कार्यों का अतिरिक्त बोझ बढ़ा दिया गया है।
“हमने जवानी छत्तीसगढ़ के विकास में लगा दी, लेकिन बदले में क्या मिला?”
मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष अजय क्षत्रि का कहना है कि “30 साल की उम्र में उच्च शिक्षा लेकर यह नौकरी पाई थी, अब 50 की उम्र में भी भविष्य असुरक्षित है। हमने अपनी पूरी जवानी ग्रामीण विकास में लगा दी, लेकिन हमें न स्थायी नौकरी मिली, न सेवा सुरक्षा, और अब तो वेतन भी महीनों से अटका हुआ है।”
कर्मचारियों की चार प्रमुख मांगें:
नियमितीकरण की प्रक्रिया पूरी होने तक सेवा एवं सामाजिक सुरक्षा के लिए मानव संसाधन नीति तत्काल लागू की जाए।
हड़ताल अवधि का बकाया वेतन जल्द से जल्द दिया जाए।
पिछले 3 से 5 महीने का बकाया वेतन तुरंत भुगतान किया जाए।
मनरेगा कर्मियों से केवल महात्मा गांधी नरेगा योजना से जुड़े कार्य ही लिए जाएं, अन्य विभागों का कार्यभार उन पर न थोपा जाए।