रूस और चीन का “प्रेम सम्बन्ध” भारत के लिए क्यों है खतरनाक, जानिए क्या सोचते हैं विशेषज्ञ

मॉस्को : रूस और चीन, दोनों देश किसी समय पर एक-दूसरे को प्रतिद्वंदी के तौर पर देखते थे लेकिन अब हालात अलग हैं। रूस, अमेरिका और चीन, इसे एक ऐसा त्रिकोण समझा जाता था जो भारत की भू-राजनीति को आकार देता था। मगर अब यह बदलने लगा है। एक साल पहले चीन और रूस के बीच नए गठबंधन की शुरुआत हुई। जिस समय रूस ने यूक्रेन के साथ जंग की शुरुआत की तो उस समय से ही चीन, इसके करीब होता गया। जहां पश्चिमी देश रूस के खिलाफ हैं तो चीन इसके गले में हाथ डालकर खड़ा है। ये गठबंधन अब भारत को मजबूर कर रहा है कि वह अपने अंतरराष्‍ट्रीय रिश्‍तों पर फिर से नजर डाले। कहीं न कहीं यह रिश्‍ता भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

भारत थोड़ा असहज
भारत निश्चित तौर पर इस बात से असहज है कि रूस और चीन करीब आ रहे हैं। इन रिश्‍तों की वजह से भारत को आशंका है कि चीन, एकपक्षीय कार्रवाई करके भारत के साथ वास्‍तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्‍य दबाव बढ़ा सकता है। भारत, चीन से निबटने के सेना को मजबूत करने में लगा है। मगर सैन्‍य आपूर्ति के लिए उसी रूस पर निर्भर है जो अब चीन के करीब हो रहा है। रूस अब चीन का जूनियर पार्टनर है और यह बात भारत को कहीं न कहीं खलती होगी। रूस पर हथियारों की निर्भरता ने इस पूरे मुद्दे को बहुत ही जटिल बना दिया है। यूक्रेन को लेकर भारत की स्थिति ने अमेरिका और यूरोप के साथ करीबी को मुश्किल में डाल दिया है।

जंग से पहले चीन का दौरा
पिछले साल चार फरवरी को जंग शुरू होने से पहले रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन चीन की यात्रा पर गए थे। अपने इस दौरे पर उन्‍होंने असीमित दायरे और बिना प्रतिबंधों वाली साझेदारी का जिक्र किया। पुतिन का वह दौरा रूस और चीन के लिए रणनीतिक संबंधों की शुरुआत था। चीन में पुतिन का ऐलान इस बात को साबित करता था कि चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग, पुतिन के साथ मिलकर पश्चिमी देशों से मोर्चा लेने को तैयार हैं।
साल 2010 तक रूस और चीन दोनों ही अमेरिका के साथ अच्‍छे रिश्‍तों की ख्‍वाहिश करते थे। रूस का लहजा लगातार पश्चिमी देशों के लिए शिकायता था तो चीन की महत्‍वाकांक्षा थी कि वह अमेरिका का सुपरपवार वाला दर्जा हासिल कर ले। इन दोनों की सोच ने अब इन्‍हें करीब ला दिया है। चीन के दौरे के बाद ही पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। कई लोग मानते हैं कि पुतिन ने जरूर इस बारे में जिनपिंग से जिक्र किया होगा।

चीन से मिला आत्म विश्वाचस
चीन और रूस के गठबंधन ने पुतिन को वह आत्‍मविश्‍वास दे दिया है जिसके बाद वह यूरोप को चुनौती दे सकते हैं। पुतिन को यह भरोसा था कि मिलिट्री आक्रामकता के बाद यूक्रेन खत्‍म हो जाएगा और वह इसे रूस की सीमा में मिला लेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया है। यूक्रेन अब इस जंग में हावी होने लगा है। रूस और चीन के करीबी रिश्‍तों का असर भारत पर भी देखने को मिल सकता है।
यूक्रेन की जंग ने चीन और रूस दोनों को अमेरिकी दबाव में ला दिया है। इस जंग की वजह से इस बात की आशंका बढ़ गई है कि रूस की देखादेखी एशिया में चीन भी अपनी सीमा का विस्‍तार कर सकता है। इस वजह से ही ऑस्‍ट्र्रेलिया और जापान के साथ अमेरिका अपने संबंधों को मजबूत करने में लगा है। इसके अलावा ताइवान को सैन्‍य समर्थन भी जोरशोर से दिया जाने लगा है।

रूस पर निर्भर भारत
अगर रूस और भारत की दोस्‍ती को कई दशकों को रणनीतिक स्‍वायत्‍ता की सफलता माना या तो अब हथियारों के लिए रूस पर निर्भरता भारत के रास्‍ते में सबसे बड़ी बाधा है। करीब तीन दशक पहले भारत ने रूस के साथ हाथ मिलाया था। दूसरी ओर चीन ने खुद को दुनिया में बहुक्षीय ताकत के तौर पर आगे बढ़ाना शुरू कर दिश था। इस नए चीन और रूस का गठबंधन, यूक्रेन में पुतिन की आक्रामकता के बाद और जटिल हो गया है। जंग की वजह से कमजोर हुआ रूस, चीन के लिए किसी दौलत की तरह होगा। यही बात भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकती है।

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