किसी की जन्म कुंडली में राजयोग तो किसी की जन्म कुंडली में कष्ट योग क्यों पाया जाता है?

अक्सर लोग प्रश्न पूछते हैं कि कुछ लोगों की जन्म कुंडली में राजयोग तो कुछ लोगों की कुंडली में कष्ट योग होने का क्या कारण है। शुभ राजयोगों के कारण कुछ लोग इस जन्म में सुख-सुविधा युक्त जीवन जीते हैं तथा कष्टयोग, दरिद्र योग के कारण कुछ लोग अभाव, संकट एवं दुःख पाते हैं। इसी प्रकार एक राजा ने अपनी राजसभा में बैठे सभी विद्वानों से एक प्रश्न पूछा मेरी जन्मपत्रिका में मेरे राजा बनने का राजयोग है लेकिन कुछ लोगों की कुंडली में कष्ट योग रहता है, उसका क्या कारण है? राजा के इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया, तब एक बुजुर्ग ज्योतिषाचार्य ने राजा से कहा कि मैं आपके प्रश्नों का उत्तर दूंगा, उसके लिए आपको यहां से कुछ दूर घने जंगल में चलना होगा।

राजा को अपना उत्तर चाहिए था, इसलिए वह बुजुर्ग की बात मानकर उनके साथ जंगल की ओर चल पड़े। घंटों यात्रा करने के बाद जंगल में उन्हें एक साधु दिखाई पड़ा, जो अग्नि के पास बैठकर अंगारा खाने में व्यस्त था, जैसे ही राजा ने उससे कुछ पूछना चाहा, साधु ने राजा को डांटते हुए कहा, ‘तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है, यहां से आगे जाओ, हो सकता है तुम्हें तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर वहां मिले,’ राजा की जिज्ञासा और बड़ गई इसलिए राजा और आगे पहाड़ियों की तरफ चल दिए।

रास्ते में उन्हें दूसरा व्यक्ति मिला, जो चिमटे से अपने ही शरीर का मांस नोच के खाने में व्यस्त था, राजा इस दृश्य को देखकर सहम गए और वह आगे बढ़ गए। फिर राजा एक गांव में पहुंचे जहां पर एक दिव्य बच्चा होने वाला था, कुछ समय बाद जब बच्चे का जन्म हुआ तो उसने राजा को देखते ही पहचान लिया और कहा, ‘राजन मेरे पास भी समय नहीं है, लेकिन अपना उत्तर मुझसे सुनो,’ उस बालक ने राजा को बताया कि पहले मिले दोनों व्यक्ति, तुम और मैं सात जन्म पहले हम चारों भाई, राजकुमार थे। शिकार खेलते-खेलते हम लोग जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे-प्यासे भटक रहे थे कि अचानक हम चारों को एक पोटली मिली जिसमें केवल चार रोटियां थी, हम लोग अलग-अलग स्थान पर बैठकर रोटी खाने लगे, तभी एक महात्मा आ गए और अंगार खाने वाले भाई से कहा कि बेटा मैं 10 दिन से भूखा हूं, अपनी रोटी में से कुछ टुकड़ा मुझको दे दो, मुझ पर दया करो, जिससे मेरा भी जीवन बच जाए, इस प्रकार महात्मा ने हम सभी से एक-एक करके रोटी का टुकड़ा मांगा, हम तीनों भाइयों ने गुस्से में कहा, ‘मैं अपनी रोटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा’ यह कहकर हम तीनों भाइयों ने महात्मा को भगा दिया।

जब महात्मा अंतिम आशा लिए तुम्हारे पास पहुंचे, तो तुमने उन पर दया करी और बड़ी खुशी-खुशी से अपनी आधी रोटी महात्मा को आदर सहित दे दी। रोटी खाकर महात्माजी प्रसन्न हुए और तुमको आशीर्वाद देकर बोले, ‘बेटा! तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलता-फूलता रहे।’ दिव्य बालक ने कहा, कि ‘पूर्व जन्म में घटी इस घटना के आधार पर इस जन्म में हम चारों आज अपना-अपना कर्मफल भोग रहे हैं।’ कहते-कहते बालक की आवाज थम गई।

राजा ने अपने भवन की ओर प्रस्थान किया और उत्तर प्राप्त करने के बाद यह एलान किया कि पूर्व जन्म के कर्मों के कारण ही व्यक्ति को इस जन्म में राजयोग अथवा कष्टयोग रूपी सुख-दुःख प्राप्त होता है। कर्मों का फल संचित होकर प्रारब्ध के रूप में इस जन्म में भाग्य का रूप ले लोता है। ज्यादातर लोग ज्योतिष शास्त्र को केवल भाग्य बताने वाला शास्त्र ही समझते हैं लेकिन सही मायने में देखा जाए तो ज्योतिष शास्त्र कर्म के नियमों पर आधारित कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र है जो मानव को उचित कर्म द्वारा भाग्य को समृद्ध करने की प्रेरणा प्रदान करता है।

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