अक्सर हम यदि किसी घर, मंदिर या भगवान की आरती- कीर्तन में हों तो ताली जरूर बजाते हैं। जब भी भजन-कीर्तन के लिए किसी भी वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है, तो हमारे हाथ थाली बजाने के जरूर उठते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर भजन कीर्तन में ताली क्यों बजाई जाती है, ताली बजाने की परंपरा कब शुरू हुई। आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं। ताली बजाने के वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों फायदे हैं। ताली बजाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी छिपी है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
ऐसे हुई थी ताली बजाने की शुरुआत
एक पौराणिक कथा के अनुसार ताली बजाने की शुरुआत भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद ने की थी। दरअसल प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को विष्णु जी की भक्ति अच्छी नहीं लगती थी। इसके लिए उसने कई उपाय किए, लेकिन इन सबका प्रहलाद पर कोई असर नहीं हुआ। आखिर में हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद के साथ वाद्य यंत्र को नष्ट कर दिया। हिरण्यकश्यप को लगा कि ऐसा करने से प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति नहीं कर पाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, प्रहलाद ने हार नहीं मानी। उसने श्रीहरि विष्णु के भजनों को ताल देने के लिए अपने दोनों हाथों को बजाना शुरू किया। इससे एक ताल का निर्माण हुआ। इस वजह से इसका ताली नाम पड़ा।
भगवान का ध्यान आकर्षित करना
इसके बाद से ही हर भजन-कीर्तन में ताली बजाने की शुरुआत हुई। माना जाता है कि ताली बजाकर भगवान को व्यक्ति के कष्टों को सुनने के लिए पुकारा जाता है। ऐसा करने से भगवान का ध्यान आकर्षित होता है। साथ ही भजन-कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से पापों का नाश होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
ताली बजाने का वैज्ञानिक कारण
वहीं ताली बजाने के वैज्ञानिक कारण की बात करें तो ताली बजाने से हथेलियों के एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स पर दबाव पड़ा है। साथ ही इससे हृदय, फेफड़ों के रोगों में लाभ मिलता है। ताली बजाने से ब्लड प्रेशर भी सही रहता है। ताली बजाना एक तरह का योग भी माना जाता है। ऐसा करने से कई तरह के रोग दूर होते हैं।