कौन था माओवादी कमांडर बालाकृष्ण उर्फ बालन्ना, जिसकी मौत से ओडिशा पुलिस ने चैन की सांस ली

रायपुर: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में सुरक्षाबलों ने एनकाउंटर में 10 नक्सलियों को मार गिराया। मारे गए नक्सलियों में माओवादी कमांडर एम. बालाकृष्ण भी शामिल था, जिसके मनोज, बालन्ना, भास्कर, चिन्नी, राजेंद्र और रामचंदर जैसे नाम थे। कारनामे इतने खतरनाक थे कि छत्तीसगढ़ सरकार ने उसके सिर पर एक करोड़ और ओडिशा सरकार ने 25 लाख रुपए का इनाम रखा था। शातिर इतना कि सुरक्षा बल कई बार उसे घेर चुके थे, मगर वह चकमा देकर भाग जाता था।

ओडिशा में तमाम बड़े हमले में शामिल रहा

पिछले 20 साल के दौरान ओड़िसा में अब तक जितने बड़े नक्सली हमले हुए, बालाकृष्ण उसमें शामिल था। ओडिशा में एंटी-नक्सल ऑपरेशन के एडीजी संजीव पांडा के मुताबिक बालन्ना की मौत से ओडिशा में माओवादियों को बड़ा झटका लगा है। 60 साल का बालाकृष्ण उर्फ बालन्ना माओवादियों की ओडिशा स्टेट कमेटी का चीफ और पार्टी के केंद्रीय कमेटी का मेंबर था। ओडिशा पुलिस ने मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में टॉप पर रखा था।

इन हमलों में रहा था शामिल

वहीं, 2008 में माओवादियों ने नयागढ़ और मलकानगिरी में सुरक्षा बलों पर बड़े हमले किए थे। नयागढ़ के हमले में माओवादियों ने 13 पुलिसकर्मियों समेत 14 लोगों को मार डाला था और जिला शस्त्रागार को लूट लिया था। इसके बाद मलकानगिरी जिले में बालिमेला रिजर्वायर पर हमले कर 37 कमांडो मारे गए थे। इन हमलों के पीछे बालाकृष्णा की रणनीति थी। पुलिस के अनुसार, अप्रैल 2009 में माओवादियों ने कोरापुट जिले में केंद्रीय पीएसयू, नाल्को पर हमला किया था, जिसमें 11 सीआईएसएफ जवान मारे गए थे।

तेलंगाना का रहने वाला था बालाकृष्ण

तेलंगाना के वारंगल का रहने वाला बालाकृष्ण 1983 में माओवादी संगठन का सक्रिय सदस्य बना। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, 1965 में पैदा हुए बाला ने हैदराबाद के एक कॉलेज में इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी। तेलुगु तो उसकी मातृभाषा थी, मगर वह हिंदी और गोंडवी भी बोलता था। उसकी शादी हो चुकी थी और उसका परिवार हैदराबाद में रहता है। बालकृष्ण को कई बार गिरफ्तार किया गया था, लेकिन जनवरी 1990 में एक अपहृत टीडीपी विधायक वेंकटेश्वर राव की रिहाई के बदले में उसे छोड़ना पड़ा।

सुरक्षाबलों के लिए चुनौती था बालाकृष्ण

पुलिस का कहना है कि माओवादी कैडर छत्तीसगढ़ में गरियाबंद और नुआपाड़ा के जंगलों के जरिए ओडिशा में घुस रहे थे। यह सुरक्षा बलों के लिए चुनौती थी। बालाकृष्ण ने कंधमाल-कालाहांडी के जंगलों में सप्लाई सिस्टम बनाने के लिए गरियाबंद रूट का इस्तेमाल करना चाहता था। गुरुवार को गरियाबंद में हुए एनकाउंटर के बाद उसकी प्लानिंग भी धरी रह गई। बालाकृष्णा की मौत के बाद ओडिशा में नक्सली कमजोर होंगे।

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