सनातन धर्म में हर साल चैत्र महीने की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को मत्सय जयंती रहती है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। पुराणों के अनुसार श्री हरि ने विश्व कल्याण के लिए मत्स्य अवतार लिया था। यह उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतारों में माना जाता है। मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार है। इसमें विष्णु जी ने विशालकाय मछली का रूप धारण किया था। इसलिए इस दिन भक्त पूरी श्रद्धा भाव और निष्ठा के साथ मत्स्य जयंती मनाते हैं। आइये जानते हैं इस साल कब मनाई जाएगी मत्स्य जयंती। क्या है इसकी पूजा विधि और महत्व।
शुभ मुहूर्त
दिन – शुक्रवार
तारीख – 24 मार्च 2023
पक्ष – चैत्र शुक्लपक्ष
तिथि – तृतीया
तृतीया तिथि का आरंभ – 23 मार्च 12:30 बजे
तृतीया तिथि का समापन – 24 मार्च शाम 05:00 बजे होगा
नोट:- उदयातिथि के अनुसार मत्स्य जयंती 24 मार्च को होगी और पूजा के लिए सुबह 10 बजे से शाम 04:15 तक का मुहूर्त शुभ रहेगा।
पूजा विधि
इस दिन नदी में स्नान का अहम महत्व माना गया है। यदि आप नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं, तो शुद्ध जल या गंगाजल से घर में स्नान कर लें। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दीजिए। व्रत का संकल्प लेकर पूजा के लिए एक चौकी तैयार कीजिए और इसमें पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान श्री हरि विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को पीले वस्त्र पहनाएं और चंदन का तिलक लगाकर, फूल, फल, मिष्ठान नैवेद्य आदि अर्पित करें। घी का दीपक प्रज्जवलित करें और इसके बाद भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा या मत्स्य पुराण का पाठ करें। भगवान विष्णु की आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें।
महत्व
सनातन धर्म पुराणों के अनुसार एक समय हयग्रीव नामक राक्षस से पृथ्वी के रक्षा के लिए भगवान श्रीहरि विष्णु ने विशालकाय मत्स्य अवतार लिया था। मछली का रूप धारण कर भगवान ने दैत्य पुत्र से पुन: वेदों को प्राप्त किया था। यही कारण है कि इस दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान, पूजा और व्रत से तन और मन की शुद्धि होती है और कष्ट दूर हो जाते हैं। मत्स्य जयंती पर मत्स्य पुराण को सुनने या पढ़ने से भगवान विष्णु की कृपा से कीर्ति और आयु में वृद्धि होती और सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।