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छठ पूजा में 4 दिन कब कौन सी पूजा, यहां जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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सनातन धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व विशेषकर उत्तर भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, छठ पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से नहाय-खाय की परंपरा के साथ शुरू हो जाता है और इसका समापन सप्तमी तिथि को होता है। इस दौरान सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व माना गया है।

चार दिन का छठ पर्व

17 नवंबर- चतुर्थी तिथि- नहाय खाय की शुरुआत

18 नवंबर – पंचमी तिथि – खरना

19 नवंबर – षष्ठी तिथि – डूबते सूर्य को अर्घ्य

20 नवंबर – सप्तमी तिथि- उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत का पारण

36 घंटे तक रखते हैं कठिन व्रत

चार दिनों तक चलने वाले छठ पर्व में सूर्य और छठी माता की पूजा की जाता है। इस दौरान देवी को प्रसाद के रूप में घर पर तैयार किया हुआ ठेकुआ प्रसाद अर्पित किया जाता है। छठ व्रत को 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है।

नहाय-खाय तिथि पर शुभ मुहूर्त

छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय होता है। पंडित आशीष शर्मा के मुताबिक, नहाय-खाय इस साल 17 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 06:45 बजे होगा वहीं, सूर्यास्त शाम 05:27 बजे होगा। इस दौरान नदी में स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।

दूसरे दिन खरना तिथि का शुभ मुहूर्त

खरना पूजा छठ पर्व के दूसरे दिन की जाती है। 18 नवंबर को खरना पूजा की जाएगी। इस दिन का सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। व्रत करने वाले के घर मे इस दिन मीठा ठेकुआ का प्रसाद तैयार किया जाता है। घर में मिट्टी के चूल्हे पर इसे तैयार किया जाता है। पंचमी तिथि के दिन व्रत करने वाले को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।

तीसरे दिन शाम को सूर्य के अर्घ्य

छठ पूजा पर तीसरे दिन शाम के समय सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को शाम 05:26 बजे होगा। सूर्य देव को अर्घ्य देते समय टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि जरूर रखना चाहिए। नदी या या तालाब में कमर तक पानी में रहकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।

आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य

छठ महापर्व के आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य का समय सुबह 06:47 बजे होगा। इसके बाद 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। इस व्रत को यदि विधि-विधान से किया जाता है तो संतान सुख की प्राप्ति होती है और संतान की आयु लंबी होती है।

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