क्या है सीएए ? लागू होने के बाद क्या होंगे बदलाव और क्यों हो रहा विवाद

नई दिल्ली :  सीएए  (नागरिकता संशोधन कानून, 2019) को लेकर देश भर में कोहराम मचा हुआ है। पूरे देश में सीएए को लेकर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है। इससे पहले भी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर कई बार विवाद देखने को मिल चुके हैं। वहीं, कुछ समय पहले केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा था कि CAA देश का कानून है और इसे हर हालत में लागू किया जाएगा।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी कुछ समय पहले ही ये साफ कर दिया था कि प्रदेश में जल्द ही UCC लागू हो जाएगा। इसका ड्राफ्ट तैयार हो चुका है और 2 फरवरी को इसे पेश किया जा सकता है।

वहीं, बीते सोमवाल (29 जनवरी) को केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने भी पश्चिम बंगाल में दावा करते हुए कह दिया कि सीएए को एक हफ्ते के अंदर लागू कर दिया जाएगा। इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि ये न सिर्फ पश्चिम बंगाल में लागू होगा, बल्कि पूरे देश में लागू किया जाएगा।

क्या है नागरिकता संशोधन कानून?

सीएए नागरिकता संशोधन कानून 2019, तीन पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश) के उन अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खोलता है, जिन्होंने लंबे समय से भारत में शरण ली हुई है। इस कानून में किसी भी भारतीय, चाहे वह किसी मजहब का हो, की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। भारत के मुस्लिमों या किसी भी धर्म और समुदाय के लोगों की नागरिकता को इस कानून से कोई खतरा नहीं है।

सीएए कब हुआ था पारित?

सीएए को भारतीय संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया था, जिसमें 125 वोट इसके पक्ष में पड़े थे और 105 वोट इसके खिलाफ थे। राष्ट्रपति द्वारा इस विधेयक को 12 दिसंबर को मंजूरी भी दे दी गई थी। मोदी सरकार और उसके समर्थक जहां इसे ऐतिहासिक कदम बता रहे हैं, वहीं विपक्ष, मुस्लिम संगठन द्वारा इसका काफी विरोध किया जा रहा हैं।

नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का फुल फॉर्म Citizenship Amendment Act है। ये संसद में पास होने से पहले CAB यानी (Citizenship Amendment Bill) था। राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद ये बिल नागरिक संशोधन कानून (CAA, Citizenship Amendment Act) यानी एक्ट बन गया है।

सीएए को लेकर क्यों हो रहा विवाद?

नागरिक (संशोधन) कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से विशिष्ट धार्मिक समुदायों (हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी) को अवैध अप्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इस पर कुछ आलोचकों का कहना है कि ये प्रावधान भेदभावपूर्ण है, क्योंकि इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। जिसके कारण ये विवादों में घिरा हुआ है।

सीएए में अब तक मुस्लिमों को क्यों नहीं जोड़ा गया?

गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर संसद में बताया था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं। वहां धर्म के नाम पर बहुसंख्यक मुस्लिमों का उत्पीड़न नहीं होता है, जबकि इन देशों में हिंदुओं समेत अन्य समुदाय के लोगों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता है। इसलिए इन देशों के मुस्लिमों को नागरिकता कानून में शामिल नहीं किया गया है। हांलाकि, इसके बाद भी वह नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिस पर सरकार विचार कर फैसला लेगी।

किसे मिल सकेगी नागरिकता?

सीएए लागू होने के बाद नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास होगा। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी। बता दें कि जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आकर बस गए थे, उन्हें ही नागरिकता मिलेगी। इस कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है, जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज (पासपोर्ट और वीजा) के बगैर घुस आए हैं या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हैं, लेकिन तय अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक गए हों।

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