रायपुर। गणतंत्र दिवस की पहले संध्या में 106 पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों का घोषणा कर दिया गया है। इसमें छत्तीसगढ़ के तीन कलाकारों ऊषा बारले, डोमार सिंह कुंवर और अरुण कुमार मंडावी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा ओआरएस के खोजकर्ता डॉ. दिलीप महलानाबिस और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया। वहीं, आर्किटेक्ट बालकृष्ण दोषी, तबला वादक जाकिर हुसैन और भारतीय मूल के अमेरिकी मेथेमेटिशियन श्रीनिवास वर्धन को भी पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। सुधा मूर्ति और कुमार मंगलम बिड़ला समेत 9 हस्तियों को पद्म भूषण से नवाजा गया है।
ऊषा बारले : देश-दुनिया में दे चुकी है अपनी प्रस्तुति
2 मई 1968 में भिलाई में जन्मी ऊषा बारले पंडवानी विधा में प्रसिद्ध हैं। वे विख्यात कलाकार तथा पद्मश्री प्राप्त तीजनबाई के साथ रही । सात वर्ष की उम्र में गुरू मेहत्तरदास बघेलजी से पंडवानी गायन की शिक्षा ली। उन्होंने भिलाई खुर्सीपार में अपना पहला कार्यक्रम दिया। न्यूयार्क, लंदन, जपान समेत कई देशों में ऊषा पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं। गिरौदपुरी तपोभूमि में भी 6 बार सम्मानित हुई है । दाऊ महासिंह चंद्राकर अवार्ड से बीएसपी भी उन्हें सम्मानित कर चुका है। वे भिलाई सेक्टर में पंडवानी की निशुल्क प्रशिक्षण भी देती हैं।
कला के क्षेत्र में ला रहे युवाओं को : अजय
काष्ठ कलाकार अजय कुमार मंडावी कांकेर जिले के गोविंदपुर गांव के रहने वाले हैं। विगत कई वर्षों से नक्सल प्रभावित युवाओं को बंदूक छोड़कर कला के क्षेत्र में ला रहे हैं और अब तक काष्ठकला में 350 से ज्यादा युवाओं को पारंगत कर चुके हैं। 54 वर्षीय अजय के कारण 400 से ज्यादा युवा काष्ठकला के जरिए आत्मनिर्भर भी हुए हैं। अजय ऐसे कलाकार हैं, जो अपनी कला के जरिए देश के लिए नासूर बनी नक्सलवादी विचारधारा रखने वाले लोगों के विचारों में परिवर्तन ला रहे हैं। जिला जेल के दो सौ बंदियों जो कभी नक्सली थे, को उन्होंने काष्ठ शिल्प में पारंगत किया है।
विख्यात नाचा विधा के कलाकार हैं डोमार
छत्तीसगढ़ की विख्यात विधा नाचा के कलाकार हैं डोमार सिंह कुंवर। 75 वर्षीय डोमार का पूरा जीवन इस विधा के प्रति समर्पित रहा है। बालोद जिले के अंतर्गत लाटाबोड गांव के रहने वाले हैं डोमार सिंह कुंवर। देशभर में 5000 बार मंचित सुलताना डाकू में वे किरदार निभा चुके हैं। सामाजिक बुराइयों, खासकर बाल विवाह के खिलाफ जागरुकता फैलाने में वे अपनी कला के जरिए वर्षों से भी लगे हैं। 12 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार मंच पर अपनी प्रस्तुति दी थी। तभी से वे नाचा, गम्मत की प्रस्तुति कर रहे है। नाचा गम्मत की प्रस्तुति के आलावा वह 150 से ज्यादा प्रेरणाप्रद गीत भी लिख चुके हैं। इसके अलावा “मन के बात मन म रहिगे” जैसे तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण तथा उसमें काम भी कर चुके हैं।