घर की दशा सुधारने के लिए करें दशा माता की पूजा, जानें पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त

चैत्र मात्र के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता की पूजा अर्चना की जाती है, इस बार यह शुभ तिथि 4 अप्रैल दिन गुरुवार को है। धार्मिक मान्यता है कि दशा माता की पूजा अर्चना और व्रत करने से घर की दिशा दशा में सुधार आता है और दरिद्रता का अंत होता है। इस दिन महिलाएं कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गठाने लगाती हैं और फिर उसे लेकर पीपल के वृक्ष की पूजा अर्चना करती हैं। इस व्रत में डोरे का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह दशा माता का डोरा कहलाता है, जिसे महिलाएं साल भर तक गले में धारण करती हैं। आइए जानते हैं कैसे किया जाता है यह व्रत और इसका क्या है महत्व…

दशा माता की पूजा का महत्व

दशा माता की पूजा अर्चना के बाद महिलाएं डोरा को गले में साल भर तक धारण करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है और घर के सदस्यों की उन्नति होती है। लेकिन अगर आप साल भर तक इसको धारण नहीं कर सकते तो वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में कोई भी अच्छा दिन देखकर माता के चरणों में अर्पित कर सकते हैं। इस व्रत में साफ सफाई का ध्यान रखना पड़ता है और घरेलू सामान व झाड़ू खरीदने का विशेष महत्व होता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, यह व्रत सभी तरह की परेशानियों से बचाता है।

दशा माता पूजा विधि

दशा माता के व्रत में कच्चे सूत का 10 तार का डोरा लेकर उसमें 10 गठाने लगाई जाती हैं। इसके बाद महिलाएं पीपल के वृक्ष की पूजा अर्चना कर 10 बार सूत लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं। फिर उस डोरे को गले में धारण कर लेती हैं। दशा माता की पूजा पीपल के पेड़ क छांव में किया जाता है और पीपल के आस पास धागा बांधा जाता है और फिर कथा सुनी जाती है। पूजन करने के बाद महिलाएं घरों पर हल्दी और कुमकुम के छापे लगाती हैं। व्रत करने वाली महिलाएं एक ही समय भोजन करती हैं लेकिन उस भोजन में नमक का प्रयोग नहीं किया जाता। साथ ही भोजन में गेहूं का उपयोग किया जाता है। दशा माता का व्रत जीवन भर किया जाता है और इसका उघापन नहीं होता है।

दशा माता की पूजा का शुभ मुहूर्त

दशा माता की पूजा के बारे में बताया जाता है कि होली के दूसरे दिन से ही महिलाएं दशा माता की 10 दिन तक अलग अलग कथा सुनती हैं। फिर चैत्र मात्र के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता की पूजा अर्चना करती हैं और फिर पीपल के पेड़ के पास जाकर पूजा अर्चना करती हैं। 4 अप्रैल को महिलाएं दशा माता की पूजा सुबह 6 बजकर 29 मिनट से 8 बजकर 2 मिनट तक, फिर 11 बजकर 8 मिनट से दोपहर 3 बजकर 46 मिनट तक कर सकती हैं।

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