कोरबा : कोरबा विधानसभा सीट में कांग्रेस की हार की प्रमुख वजह सत्ता विरोधी लहर रही। जयसिंह अग्रवाल के रास्ते में उनके अपने ही सत्ता में आसीन लोगों ने कांटे बिछाए, इसकी वजह से कई काम प्रभावित हुए और इसका असर परिणाम में देखने को मिला। साथ ही स्थानीय वाद के समीकरण ने भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया।
वर्ष 2018 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कई दिग्गजों को पीछे छोड़ जयसिंह अग्रवाल मंत्रीमंडल में शामिल होने में सफल रहे, पर इसके साथ ही परेशानियां भी शुरू हो गई। ढाई- ढाई साल का फार्मूला का विवाद इतना गहराया कि पार्टी में खेमेबाजी हो गई। यदि किसी नेता के साथ कोई अपने निजी संबंध निभा रहा हो, तब भी उसे खेमेबाजी के आरोपों में घेर लिया जाता था। इसी तरह की परिस्थितियां मंत्री अग्रवाल के साथ भी निर्मित हुई और उनके अपने पार्टी के लोगों ने चुनाव हराने के लिए पहले से ही चक्रव्यूह रचना शुरू कर दिया।
अभिमन्यू की तरह फंसे जयसिंह ने चक्रव्यूह को ध्वस्त करने की पूरी कोशिश की और विपरित परिस्थितियों में भी योद्धा की तरह लड़ा। यह बात तो अब तय हो गई है कि कांग्रेस ने जिस ढंग से सत्ता चलाया, वह तरीका छत्तीसगढ़ के लोगों को पसंद नहीं आया और विपक्ष में बैठने का जनादेश जनता ने जारी कर दिया। पहले से ही जयसिंह के रास्ते में कांटे बिछाए जा चुके थे और ऐसे में छत्तीसगढ़ी कहावत दुबर बर दु आषाढ जैसी स्थिति सत्ता विरोधी लहर की वजह से निर्मित हो गई। भाजपा ने प्रत्याशियों को पहली सूची जारी की, उसमें लखनलाल का नाम शामिल रहा। तीन माह पहले प्रत्याशी घोषित किए जाने को अवसर की तरह लखनलाल ने लिया और पूरी ताकत झोंक दी। पूर्व में नगर निगम में महापौर रहने की वजह से स्थानीय व्यक्तियों के बीच उनकी अच्छी पकड़ रही है, इसका भी लाभ उन्हें इस चुनाव में मिला। लगातार तीन बार से जयसिंह विधायक रहे, इसलिए बदलाव की बयार भी चली।
क्या लखन को मिलेगी मंत्री मंडल में जगह
लखनलाल देवांगन दूसरी बार विधायक बने हैं। इसके पहले वर्ष 2013 में कटघोरा विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे। पूर्व मुख्यमंत्री डा रमन सिंह के नजदीकी होने का लखन को राजनीतिक फायदे मिलते रहे हैं। उन्हें संसदीय सचिव भी बनाया गया था। पिछड़े वर्ग के इस नेता को मंत्रीमंडल में जगह मिलेगी या नहीं, इसे लेकर अभी से चर्चा शुरू हो गई है। ऐसे पिछड़े वर्ग से जीतने वाले भाजपा नेताओं की लंबी लाइन है।
निगम के सत्ताधारी नेताओं ने भी डुबाई लुटिया
नगर निगम में कांग्रेस की ही सत्ता है, पर इसके अहम किरदार निभा रहे नेताओं ने भी लुटिया डुबाने में कोई कसर बांकी नहीं रखा। फिर चाहे वह शीर्ष में बैठे नेता हो या फिर वार्डों की जिम्मेदारी निभाने वाले। बड़े पद की लालसा में सभी ने वार्ड स्तर पर चुनाव लड़ा, पर वार्ड में पार्षद बनने के बाद लोगों की अपेक्षा अनुरूप अपना दायित्वों का निर्वहन नहीं किए। काम नहीं करने वाले इन पार्षदों से भी कहीं न कहीं लोगों को नाराजगी थी।